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तत्कालीन सिरोही राज्य में 1. मई 1920 में अनूप स्वामी के भाविक महाराजा सिरोही के दर्शन करने के लिए सिरोही पैलेस में आए
मगर महाराजा ने जैन धर्मावम्बियों के विरुद्ध की जा रही अपराधिक गतिविधियों के कारण इनसे मिलने से इनकार कर दिया एवं इनकी मांग को मूर्खतापूर्ण (Silly) समझ कर पैलेस से निकाल
दिया। (निर्णय फौजदारी केस सं. 339/1919-20 दिनांक 30 जून 1920 पेरा सं. 3 से उद्धृत) 2. अनूप मण्डल के भाविकों के विरुद्ध मुकदमा सं. 339/1919-20 में मुल्जिम सुथार जैसा पुत्र
सांकला व अन्य सात भाविकों को 30.6.26 को सजा सुनाई गई। 3. 9.2.26 को निम्न विज्ञप्ति जारी कर अनूप मण्डल का समस्त साहित्य जब्त करने के आदेश दिए। इसी आशय की विज्ञप्ति पुनः 11.3.26 को जारी की गई।
इश्तहार मेहकमा चीफ कोर्ट राज सिरोही सील चीफ कोर्ट सिरोही स्टेट ता. 9 फरवरी सन् 1926 ई., जो कि सन् 1920 ई. के साधु अनोपदास के करीब 1500 चेलों ने सिरोही इलाके में बनियों के साथ ही बहुत सी सख्तियें की और मारपीट की थी, जिस पर 65 आगेवान पंथ वालों को सजायें हुई थी और जगत हिकारनी किताब जिस पर बनियों की बुराइयां छपी हुई थी वो जब्त की गई। सजायाफ्ता पंथ वालों ने सजा भुगत कर छूटने पर खास सिरोही में और इलाकों में जगह वो जगह मकानात बनाए और उन्होंने फिर पहले के माफिक ही 'जगत हितकारणी' के अलावा 'न्याय चिन्तामणी', जिसमें 'आतम पुराण' भी शामिल है छपवाई और 'अनोपदास के मेले का इतिहास' भी छपवाया इनमें 'जगत हितकारणी' से भी ज्यादा बुरे लफ्ज बनियों के खिलाफ दर्ज है। यह किताबें अनोपदासजी के पंथ वाले पढ़कर व गाकर आम लोगों को सुनाते हैं इससे रंजिश बढ़कर पहले माफिक बावेला होने का पूरा अंदेशा है। हमने आठ सख्शों को जो इन किताबों को छपवाने में शामिल थे, हस्ब दफा 153 अलीफ ताजीराते हिन्द की सख्त कैद की सजा दी है और यह भी मुनासिब मालूम होता है कि किसी के पास कोई किताबों में से कोई हो, सब जब्त की जावे और हर खास व आम को सख्त तवजोह दी जावें की ऐसे भजन, गीत या लब्ज न गावें और न बोलें जिसमें किसी कौम की बुराई हो, वरना सजा पावेंगे।
हुकम हुआ के बजरिए इस तहरीर हाजा हर खास व आम को इत्तला दी जाती है कि जिस किसी के कब्जे में जगत हित कारणी, न्याय चिन्तामणी, आतम पुराण, अनोपदास के मेले का इतिहास, हो वो तारीख एक अप्रेल 1926 ई. के पहले नजदीक की पुलिस या तहसील में पेश कर दें और आयन्दा कोई लब्ज, गीत, भजन न बोलें और न गावें जिसमें किसी मकाम की बुराई हो, वरना सजा पावेंगे। अफसरान पुलिस को, ठिकानेजात को चाहिए कि किताबें जब्त कर अदालत हाजा में भेज दें और अनोप पंथ की झुपड़ियों पर भी इश्तहार शाया कर देवें और इसकी तामील में गफलत न रखें। एक-एक नकल तमाम तेहसील व मेहकमेजात में इतलान भेजी जावें। फकत तारीख 9 फरवरी सन
ह.सी.पी. देसाई, बी.ए., एल.एल.बी., चीफ जज, सिरोही स्टेट
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