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अस्वीकार कर मामले में अन्वीक्षा चाही।
अन्वीक्षा के दौरान अभियोजन ने अपने मामले के समर्थन में गवाह पी.ड. 1 लक्ष्मीचंदए पी.ड. 2 गौतम भास्कर, पी.ड. 3 डा. मोहनलाल डोसी, पी.ड. 4 जसवंतसिंह के बयान लेखबद्ध करवाये। तत्पश्चात् अभियोजन ने शहादत पैरवी बंद की।
अभियुक्त के बयान मुलजिम अन्तर्गत धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता में लिये गये। बरीयत पेश करने हेतु समय चाहा, परन्तु अभियुक्त ने किसी गवाह के बयान लेखबद्ध नहीं करवाये। बरीयत बंद की। बहस अंतिम सुनी गई। मेरे समक्ष इस प्रकरण में विचारणीय प्रश्न है, कि :
(1) क्या मुलजिम ने जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए तथा उनके धार्मिक विश्वासों का अपमान करने की नियत से अपने समाचार पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक के दिनांक 7.3.94,27.12.93 व 25.5.94 के समाचार पत्रों में प्रतिबंधित ग्रन्थ जगतहितकारीणी व आत्मपुराण ग्रंथों की बातें तथा अन्य बातें छापकर जैन धर्म के धार्मिक विश्वासों का अपमान किया और इस प्रकार धारा 295ए भा.दं.सं. में दंडनीय अपराध कारित किया?
इस प्रकरण में गवाहों का विस्तृत विवरण आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह प्रकरण मूलतः दस्तावेजों पर आधारित है।
सबसे पहले यह देखा जाना उचित है कि क्या मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में ऐसी बातें प्रकाशित की, जो जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं पर आहत करती है। इस संबंध में फरियादी पी.ड. 1 लक्ष्मीचंद का कहना है, कि उन्होंने प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 थाना, सांचोर में पेश की थी, क्योंकि मुलजिम ईश्वरलाल ने अपने पत्र 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक के विभिन्न अंकों में जैन आदमियों और जैन साधुओं पर अखबार के माध्यम से कीचड़ उछाला तथा जैनों की तुलना रावण, हरणाकुस, कंस व कांसन आदि से की गई तथा शिवलिंग की पूजा को भी व्यभिचार बताया। इससे जैन धर्म में घृणा का वातावरण पैदा हुआ है। इसके अतिरिक्त मुलजिम ने अपने अखबार के अंक दिनांक 15.2.94, 22.2.94 तथा 25.5.94 के अंकों में हरचंद सोनी रचित आत्मपुराण तथा अनोप दास स्वामी रचित जगतहितकारीणी ग्रन्थों के कथनों को उद्धृत किया है, जबकि उक्त दोनों ग्रन्थ गृह विभाग के आदेश दिनांक 5.1.97 द्वारा प्रतिबंधित है। इस बयानों की पुष्टि पी.ड. 3 डा. मोहनलाल डोसी भी करते हैं, जिनका कहना है, कि मुलजिम ईश्वरलाल, सत्यपुर टाईम्स अखबार निकालता है। इसने अनोपदास महाराज के माध्यम से जैनों के प्रति बहुत ही घृणित व साम्प्रदायिक भावना फैलाने वाले समाचार छापे हैं। इन दोनों गवाहों के बयानों की पुनः पुष्टि प्रथम सचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-1 तथा सत्यपर टाईम्स के अंक संख्या 6 दिनांक 7.3.94 प्रदर्श पी-3, प्रदर्श पी-4 दिनांक 25.5.94 अंक संख्या 18 से भी होती है। इन दोनों समाचार पत्रों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 में स्पष्ट रूप से सम्पादक ने लिखा है, कि जगतहितकारीणी में अनोपदास जी ने यह कहा है और आत्मपुराण में हरचंद सोनी ने यह कहा है अर्थात् प्रदर्श पी-3 में उक्त दोनों ग्रन्थों आत्मपुराण व जगतहितकारीणी को उद्धत किया है। इसी प्रकार प्रदर्श पी-4 में भी जगतहितकारीणी को उद्धत किया है तथा उसमें अपना विवेचन भी मुलजिम द्वारा दिया गया है। उक्त दोनों प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4 को
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