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________________ पढ़ने से यह स्पष्ट होता है, कि इन समाचार पत्रों में जो बातें लिखी गई हैं वो स्पष्ट रूप से जैन धर्म की भावनाओं को आहत करने वाली है। जैसे कि प्रदर्श पी-3 दिनांक 7.3.94 के अंक में लिखा है, कि जैन धर्म के टीपणे राक्षस विद्या के है.. .ये सौदागर महाजनान ने जालसाजी करके राक्षसी पाप के टीपणे बना ....... दिये हैं तथा ब्राह्मणों को पकड़ा दिये हैं। इसी प्रकार सोनी हरचंद रचित आत्मपुराण के अंश में भी यह लिखा गया है, कि सभी बनिये (जैन) चोर है इत्यादि । इसी प्रकार प्रदर्श पी-4 दिनांक 24.4.94 के अंक जगतहितकारीणी ग्रन्थ का विवेचन करते हुए लिखा गया है, कि जैन समाज अपने धन बल के माध्यम से अपने जादू टोने-टोटके इत्यादि इन्द्रजाली क्रियाओं से भाविकों को परेशान करते रहते हैं...... इन्द्रजाल द्वारा बुद्धि भ्रष्ट करके लोगों को नेकी से हटाना तथा उन्हें तकलीफें देना जैन बनियों का मुख्य कार्य है। 84 का चक्कर बना रखा है जो इन जैन बनियों का बनाया हुआ है...... जैन धर्म के समस्त गुप्त ग्रन्थों को सार्वजनिक किया जाये, यदि ग्रन्थ सार्वजनिक नहीं किये जाते हें तो यह माना जाये कि जैन बनिये पूरे संसार के गुनहगार है इत्यादि । इन सभी अंकों के पढ़ने मात्र से जैन समाज जैसे अहिंसा को मानने वाले समाज के प्रति निश्चय ही किसी भी पढ़ने वाले व्यक्ति की जैन धर्म के प्रति गलत भावनाएं बनती हैं तथा इनको पढ़ने मात्र से ही किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म के प्रति आहत 'जाना स्वाभाविक है। अतः स्पष्टतः यही प्रतीत होता है, कि ये समस्त बातें जैन धर्म की समूह की भावनाओं को निसंदेह आहत करती है। विभिन्न गवाहों से प्रतिपरीक्षा में बचाव पक्ष द्वारा इस प्रकार के प्रश्न पूछे गये हैं, जैसे बचाव पक्ष यह कहना चाहता हो कि जो उन्होंने छापा है, वो सत्य है। यदि मुलजिम ने जो कुछ छापा है, तो यदि सत्य है तो भी सत्य को भी इस तरह से नहीं छापा जा सकता है, कि किसी धर्म के धार्मिक भावनाएं आहत हो। इस प्रकार उक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है, कि मुलजिम ईश्वरलाल ने अपने अंक दिनांक 7.3.94 व 25. 5.94 में जो सामग्री छापी है, वो जैन धर्म की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। 2. पी. ड. 1 फरियादी लक्ष्मीचंद का यह भी कहना है, कि मुलजिम ईश्वरलाल ने अपने समाचार पत्र में जगतहितकारीणी इत्यादि ग्रन्थों को छापा है जो कि राज्य सरकार के आदेश से प्रतिबंधित है। उक्त पुस्तकों को प्रतिबंधित करने पर नोटिफिकेशन प्रदर्श पी-7 है ( बयानों के वक्त नोटिफिकेशन की फोटो प्रति ही फरियादी ने पेश की, परन्तु बाद में दिनांक 27.2.97 को असल नोटिफिकेशन व नकल पेश कर दिया था) तथा फरियादी का कहना है, कि उक्त दोनों पुस्तकें प्रतिबंधित है तथा मुलजिम ने प्रतिबंधित सामग्री को अपने समाचार पत्र में छापा है। इस संबंध में यह तो पहले ही सिद्ध हो चुका है, कि मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में अनोपदास रचित जगतहितकारीणी व सोनी हरचंद रचित आत्मपुराण के अंश अपने अखबार में प्रकाशित किये हैं। प्रदर्श पी-6 गृह विभाग राजस्थान सरकार के नोटिफिकेशन जो कि दिनांक 29.8.57 के राजस्थान राज पत्र के पृष्ठ संख्या 270 पर उक्त नोटिफिकेशन छापा है, जो नोटिफिकेशन संख्या एफ/25 (9) बी एच / 56 दिनांक 5.8.57 द्वारा उक्त दोनों पुस्तकों को प्रतिबंधित किया जा चुका है तथा उक्त आदेश में स्पष्टतः बताया गया है, कि इस पुस्तकों को छापना धारा 153ए व 295ए भा.दं.सं. में..... अपराध होगा। इस नोटिफिकेशन के जवाब में बचाव पक्ष का कहना है, कि उन्होंने जिन पुस्तकों को उद्धृत किया है वे दोनों पुस्तकें केन्द्र सरकार के कोपी राइट विभाग द्वारा रजिस्ट्रेशन की अनुमति प्रदर्श डी-2 व पदर्श डी-3 के पश्चात् ही छापा गया है। मैं बचाव के इन तर्कों से सहमत हूं कि 64 +
SR No.006170
Book TitleAnup Mandal Ki Apradhik Karyavahi Ke Viruddh Rajy Sarkar Dwara Jari Adhisuchnaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
PublisherBharatiya Sanskruti Samanvay Samsthan Jodhpur
Publication Year2015
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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