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उक्त दोनों पुस्तकों को कोपी राईट विभाग ने प्रदर्श डी-2 व प्रदर्श डी-3 के जरिये कोपी राईट की अनुमति दे रखी है। परन्तु किसी भी स्थिति में किसी पुस्तक पर कोपी राईट मिलने मात्र से यह नहीं माना जा सकता है कि उसमें छपी हुई सामग्री प्रतिबंधित होने योग्य है या नहीं। अर्थात् कोपी राईट विभाग के उक्त दोनों आदेश गृह विभाग राजस्थान सरकार के आदेश दिनांक 5.8.57 पर प्रभावी नहीं माने जा सकते हैं। और वो भी ऐसी स्थिति में जबकि अभियोजन द्वारा राजस्थान सरकार के गृह विभाग के उप शासन सचिव (विधि) के दिनांक 21.12.95 के आदेश प्रदर्श पी-5 के जरिये धारा 196 सी.आर.पी.सी. के तहत आवश्यक अभियोजन स्वीकृति हासिल कर ली है। अतः इस प्रकार बचाव पक्ष का बचाव पूरी तरह से अमान्य हो जाता है। अत: यही सिद्ध होता है, कि मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में जगतहितकारीणी व आत्मपुराण पुस्तकों को उद्धृत किया, जबकि दोनों पुस्तकें गृह विभाग राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिबंधित थी। स्पष्टतः उक्त प्रतिबंधित पुस्तकों को छापना भी धारा 295ए भा.दं.सं. के अपराध में आता है।
3. बचाव पक्ष ने मुख्य बचाव यह लिया है, कि फरियादी लक्ष्मीचंद और मुलजिम के पुरानी कोई अदावत थी और उसके कारण फरियादी ने यह झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है। हालांकि इस प्रकार की कोई अदावती पत्रावली में किसी दस्तावेज से स्पष्ट नहीं होती है और यदि ऐसी कोई अदावती हो तो भी जबकि अन्य तरीके से मुलजिम पर अपराध सिद्ध हो चुके हैं तो यह मानने का कोई आधार नहीं है, कि रंजिश के कारण फरियादी ने झूठा मुकदमा दर्ज करवाया है।
4. बचाव पक्ष का यह भी कहना है, कि अभियोजन दिनांक 27.12.93 के अंक को साक्ष्य में पेश नहीं कर पाया है। यह ठीक है, कि इस अंक को अभियोजन ने साक्ष्य में पेश नहीं किया है, परन्तु इस संबंध में पी.ड. 1 फरियादी लक्ष्मीचंद का कहना है, कि दिनांक 27.12.93 की प्रति अनुसंधान के दौरान गायब हो गई थी। परन्तु केवल एक अंक के गायब होने से अभियोजन की कहानी पर कोई घातक प्रभाव नहीं पड़ता है।
____5. अतः इस प्रकार उक्त विवेचन से अभियोजन ने पूरी तरह से सिद्ध कर दिया हे, कि मुलजिम ने अपने समाचार पत्र में प्रतिबंधित जगतहितकारीणी व आत्मपुराण के अंशों को छापा तथा इसके अतिरिक्त भी उक्त पुस्तकों के विवेचन से जो बातें छापी वो भी जैन समुदाय के धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली है। अतः इस प्रकार मुलजिम धारा 295ए भा.दं.सं. में दोष सिद्ध होने योग्य है।
- आदेश - अतः मुलजिम ईश्वरलाल वल्द कालूराम, कोम-खत्री, निवासी-सांचोर, सम्पादक 'सत्यपुर टाईम्स' साप्ताहिक, सांचोर को आरोपित अपराध अन्तर्गत धारा 295ए भारतीय दंड संहिता में दंडनीय अपराध करने का दोष सिद्ध करार दिया जाता है।
(ज्ञान प्रकाश गुप्ता) सिविल जज (कनिष्ठ खंड) एवं न्यायिक
मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग-सांचोर
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