________________
बाड़मेर ने जून 19
भारतीय प्रेस परिषद्, नई दिल्ली
वार्षिक रिपोर्ट (1993-94).
(1 अप्रैल 1993 - 31 मार्च 1994) 56) श्री जैन श्वेताम्बर,
अध्यक्ष, खट्टरगच्चा श्री संघ, बाड़मेर
. बनामश्री निकलंक एक्सप्रेस बाड़मेर
(दिनांक 28-3-94 को निर्णीत) सम्पादक ने खेद व्यक्ति किया-मामला समाप्त शिकायत
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि प्रतिवादी, श्री निकलंक एक्सप्रेस, हिन्दी साप्ताहिक, डमेर ने जन 1992 से अक्टबर 1992 के बीच अपने अकों में 'जगत हितकारी'.'न्याय चिन्तामणि' और 'आत्म पुराण' जैसे ग्रंथों से अंश प्रकाशित कर जैन धर्म के अनुयायियों के विरुद्ध सुव्यवस्थित अभियान चलाया है। उनका तर्क है कि ये पुस्तिका/पुस्तकें राजस्थान सरकार द्वारा प्रतिबंधित हैं और भारतीय दंड विधि प्रक्रिया की धारा 153 अ और 295 अ के अन्तर्गत इन दस्तावेजों का प्रकाशन दण्डनीय है। उनके अनुसार, इन आक्षेपित समाचारों के प्रकाशन का उद्देश्य भारतीय नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रता और घृणा की भावना को फैलाना है।
प्रतिवादी सम्पादक ने अपने लिखित क्क्तव्य में कहा है कि जैन साहित्य में अन्य समुदायों के बारे में विषयोद्गार उद्धरित हैं। बाजार में इनका साहित्य उपलब्ध नहीं है और इसीलिए उन्होंने इसे अपने समाचारपत्र में प्रकाशित किया है। आक्षेपित रिपोर्ट सदाशय से प्रकाशित की गई है और यह किसी भी प्रकार से किसी को असंतुष्ट नहीं करता। हालांकि, वह इस बात से अनभिज्ञ थे कि राजस्थान सरकार ने इन पुस्तकों को प्रतिबंधित किया है अन्यथा वे इसके अंश प्रकाशित नहीं करते। निर्णय
दस्तावेजों के अवलोकन और जांच समिति की सिफारिशों के बाद परिषद् इस बात से सहमत है कि रिपोर्ट सरकार द्वारा पुस्तक को प्रतिबंधित करने के फैसले से अनभिज्ञ होने के कारण प्रकाशित की गई। आक्षेपित प्रकाशन वस्तुतः कुनिष्ठा अथवा दुर्भाव से नहीं किया गया। इसके अलावा, सम्पादक ने अनभिप्रेत त्रुटि के लिए खेद व्यक्त कर दिया है। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए परिषद् ने मामला समाप्त करने का निर्णय किया।
-85