Book Title: Vruttamauktik
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan

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Page 12
________________ समर्पण यः सूरीश्वर - वंश-सागर - मणिर्वादीमपञ्चाननः, तं श्रीजनविधौ गणे दिनमणिं ध्यायामि हद्ध्वान्तहम् । हिन्द्यामागमसंप्रसारमणिना प्रोद्धारि येन श्रुतं, मव्यानामुपदेशदानमणये तस्मै नमः सर्वदा ॥ यस्मात्प्रादुरभून्मणेः शुविधा श्रीगौतमाद्वागिव , वागीशानिव वादिनो जितवती वादेषु संवादिनः । सौमत्यम्बुनिधेर्मणे: समुदयात् सज्ज्ञानमालोकते, ग्रन्थं मौक्तिकनामकं गुरुमणौ भक्त्या मया ह्यय॑तें ॥ चारुचराचचरीक विनय

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