Book Title: Vruttamauktik
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan

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Page 11
________________ वृत्तमौक्तिक ___ ग्रन्थ की रचना कहां हुई इसका उल्लेख कहीं नहीं किया गया । परन्तु ग्रन्थकार तेलंगदेशीय भट्ट वंश के ब्राह्मण थे और उनकी वंशपरम्परा सुप्रसिद्ध वैष्णव सम्प्रदाय के धर्माचार्य श्री वल्लभाचार्य के वंश से अभेद स्वरूप रही है। प्रस्तुत रचना में कर्ता ने सर्वत्र श्रीकृष्णभक्ति का और मथुरा वृन्दावन के गोप-गोपीजनों के रस-विहार का जो वर्णन किया है उससे यह कल्पना होती है कि ग्रन्थकार मथुरावृन्दावन के रहने वाले हों ! इस ग्रन्थ का सम्पादन श्री विनयसागरजी महोपाध्याय ने बहुत परिश्रम-पूर्वक बड़ी उत्तमता के साथ किया है। ग्रन्थ से सम्बद्ध सभी विचारणीय विषयों का इन्होंने अपनी विद्वत्तापूर्ण विस्तृत प्रस्तावना और परिशिष्टों में बहुत विशद रूप से विवेचन किया है जिसके पढ़ने से विद्वानों को यथेष्ट जानकारी प्राप्त होगी। ग्रन्थमाला के स्वर्णसूत्र में इस मौक्तिक-स्वरूप रत्न की पूर्ति करने निमित्त हम श्री विनयसागरजी के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं और आशा रखते हैं कि ये अपनी विद्वत्ता के परिचायक इस प्रकार के और भी ग्रन्थ-सम्पादन के कार्य द्वारा ग्रन्थमालो की सेवा और शोभावृद्धि करते रहेंगे। मुनि जिनविजय सम्मान्य सञ्चालक जन्माष्टमी, सं. २०२२ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर दि० २०-८-६५

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