Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 12
________________ ( समस्त क्लेशवर्जित ) ए प्रभुथी हुं सनाथ छु. (सुरासुरवंदित ए प्रभुने ज) हुं एक मनथी वांछं छं. तेमनाथी ज हुं कृतकृत्य कुं अने (त्रिकाळवेदी एवा ) ते प्रभुनो ज हुँ किंकर छु. ५ तत्र स्तोत्रेण कुर्या च, पवित्रां स्वां सरस्वतीम् । इदं हि भवकान्तारे, जन्मिनां जन्मनः फलम् ॥ ६॥ ते प्रभुनी स्तुति-स्तोत्र करवावडे हुं म्हारी वाणीने पवित्र करुं छं, कारण के आ भव अटवीमां प्राणीओने जन्म पाम्यान ए ज फळ छे.६ क्वाऽहं पशोरपि पशु-र्वीतरागस्तवः क्व च ? उत्तितीपुररण्यानी, पद्भ्यां पङ्गुरिवारम्यतः॥७॥ पशुथी पण पशु जेवो हुँ क्या ? अने (बृहस्पतिने पण अशक्य एवी) वीतरागनी स्तुति क्या ? तेथी पगवडे महाअटवीने उल्लंघन करवा इच्छता पांगळा जेवो हुँ छं. (एटले आ म्हारं आचरण, महा साहसरूप होवाथी हसवा जेवू के.) ७ तथापि श्रद्धामुग्धोऽहं, नोपालभ्यः स्खलन्नपि । विशृङ्खलापि वाग्वृत्तिः, श्रद्दधानस्य शोभते ॥ ८॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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