Book Title: Vitrag Mahadev Stotra Author(s): Hemchandracharya, Publisher: Jain Atmanand SabhaPage 54
________________ (४५) अथ द्वादश प्रकाश. १२. प्रभुने आटली बधी संपत्तिनी प्राप्ति थई तेनो उपायरूप वैराग्य बतावे छे पथभ्यासादरैः पूर्व, तथा वैराग्यमाहरः । यथेह जन्मन्याजन्म, तत्सात्मीभावमागमत् ॥१॥ हे वीतराग ! आपे पूर्व भवमा सुंदर अभ्यासना आदरे करीने एहवो वैराग्य प्राप्त को हतो के जेथी आ (तीर्थकरना ) भवमा ते वैराग्य जन्मथो ज सहज भावने पामेल छ अर्थात् जन्मथी ज आपनो आत्मा वैराग्यथी रंगायेलो छे. दुःखहेतुषु वैराग्यं, न तथा नाथ ! निस्तुषम् । मोक्षोपायप्रवीणस्य, यथा ते सुखहेतुषु ॥२॥ हे नाथ ! मोक्षना उपाय ( ज्ञानादिक) मां प्रवीण एवा आपने सुखना हेतुने विषे जेवो निर्मळ वैराग्य होय छे. तेवो दुःखना हेतुने विषे नथी होतो. एटले जे दुःखहेतुक वैराग्य होय ते क्षणिक होय छे अने सुखहेतुक वैराग्य होय ते निश्चल होवाथी मोक्षनुं साधन अवश्य थाय छे. २. Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.orgPage Navigation
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