Book Title: Vitrag Mahadev Stotra Author(s): Hemchandracharya, Publisher: Jain Atmanand SabhaPage 67
________________ ( ५८ ) अथ पंचदश प्रकाशः १५. हवे भक्तिपूर्वक स्तुति करे छे. - जगज्जैत्रा गुणास्त्रातरन्ये तावत्तवासताम् । उदात्तशान्तया जिग्ये, मुद्रयैव जगत्त्रयी ॥१॥ हे रक्षक ! प्रथम तो जगतने जीतनारा बीजा आपना गुणो दूर रहो, परंतु उदात्त ( पराभव न पमाडी शकाय एवी ) अने शांत ( सौम्य ) एवी आपनी मुद्राए ज त्रण जगतने जीती लोधा छे. १. मेरुस्तृणीकृतो मोहात्, पयोधिर्गोष्पदीकृतः । गरिष्ठेभ्यो गरिष्ठो यैः पाप्मभिस्त्वमपोदितः ॥२॥ हे नाथ ! जे पापीओए मोटाथी पण माटा एटले इंद्रादिकथी पण मोटा एवो आपनो अनादर कर्यो छे, तेओए अज्ञानथी मेरुपर्वतने तृण जेवडो गण्यो छे अने समुद्रने गोष्पद ( गायनी खरी ) जेवडो गण्या के. २. Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.orgPage Navigation
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