Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya,
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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(६२)
अथ षोडशः प्रकाशः १६ हवे प्रभु पासे स्तुतिकार पोतानी फरीयाद करे छे. त्वन्मतामृतपानोत्था, इतः शमरसोर्मयः । पराणयन्ति मां नाथ !, परमानन्दसम्पदम् ॥१॥
हे नाथ! एक बाजुए आपना मतरूपी (आगमरूपी) अमृतना पानथो उत्पन्न थयेला शमता रसना तरंगो मने परमानंदनी लक्ष्मी प्राप्त करावे छे. १. इतश्चानादिसंस्कारमूच्छितो मूर्च्छयत्यलम् । । रागोरगविषावेगो, हताशः करवाणि किम् ? ॥२॥
तथा बीजो बाजुए अनादि काळना भवभ्रमणना संस्कारथी उत्पन्न थयेलो रागरूपो सर्पना विषनो वेग मने अति मूळ पमाडे छे (सत्यज्ञान रहित करी दे छे.) ता हगायेलो आशोवाळो हुँ शुं करूं ? २ रागाहिगरलाघ्रातोकार्ष यत्कर्मवैशसम् । तद्वक्तुमप्यशक्तोऽस्मि, धिग्मे प्रच्छन्नप्रापताम् !॥३॥
हे प्रभु ! रागरूपी सर्पना विषथी व्याप्त थएला में जे अयोग्य कृत्य कर्यु छे ते आपनो पासे कहेवाने पण हुँ अशक्त छं. तेथी मारा गुप्त पाप करवापणाने धिक्कार छे. ३.
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