Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 85
________________ ( ७६ ) अथ विंशतितमः प्रकाशः २० हवे आशी:स्तव कहे छे एटले इच्छित वस्तुनी प्रार्थना करे के.पादपीठलुठन् मूर्ध्नि, मयि पादरजस्तव । चिरं निवसतां पुण्यपरमाणुकणोपमम् ॥१॥ हे वीतराग ! आपना पादपोठमां मस्तकने नमावतां मारा ललाटने विधे पुण्यता परमा गुना कणोया जेवी आपनो पाइरज चिरकाल ( संसारमा हुँ रहुं त्यां सुधी ) रहो. १. मद्दशौ वन्मुखासक्ते, हर्षवाष्पजलोमिभिः । अप्रेक्ष्यप्रेक्षणोद्भूतं, क्षणात्क्षालयतां मलम् ॥२॥ हे प्रभु ! पूर्वे नहीं जोवा लायक परस्त्रो, कुदेव विगेरेने जोवाथी उत्पन्न थयेला पापरूप मळने अत्यारे आपना मुखमां ओसत थयेला मारां आ नेत्रो हर्षाश्रुना जलतरंगोवडे क्षगवारमा धोइ नांखो. २. त्वत्पुरो लुठनैर्धयान्मदालस्य तपस्विनः । कृतासेव्यप्रणामस्य, प्रायश्चित्तं किणावलिः ॥३॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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