Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 77
________________ अथ अष्टादशः प्रकाशः १८. हवे कठोर वचनवडे प्रभुनी स्तुति करे छे.न परं नाम मृद्वेव, कठोरमपि किञ्चन । विशेषज्ञाय विज्ञप्य, स्वामिने स्वान्तशुद्धये ॥१॥ केवल कोमळ वचनथी ज नहीं परन्तु विशेष जाणनारा स्वामीने पोताना मननी शुद्धिने माटे काइको कठोर वचनथी पण विनंति कराय छे. १. न पक्षिपशुसिंहादिवाहनासीनविग्रहः। न नेत्रगात्रवक्त्रादिविकारविकृताकृतिः ॥२॥ __ हे प्रभु ! आपे हंस, गरुड विगेरे पक्षी, बकरो, बळद विगेरे पशुओ अने सिंह विगेरे वाहनो उपर शरीरने आरूढ कयु नथी; तेम ज नेत्र, अवयव अने मुख विगेरेना विकारवडे ओपनी आकृति विकारवाळी नथी. २. न शूलचापचक्रादिशस्त्राङ्ककरपल्लवः । नाङ्गनाकमनीयाङ्गपरिष्वङ्गपरायणः ॥३॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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