Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya,
Publisher: Jain Atmanand Sabha
View full book text
________________
( ५३ )
वृक्ष समान अने अचिंत्य चिंतामणि समान आपने विषे में मारो आ आत्मा अर्पण कर्यों छे. ७.
(पहेलेथी ओ सातमा श्लोक सुधीमा अनुक्रमे पहेलेथी साते विभक्तिओ लीधेली छे.)
फलानुध्यानवन्ध्योऽहं, फलमात्रतनुर्भवान् । प्रसीद यत्कृत्यविधौ, किङ्कर्तव्यजडे मयि
|८||
आप सिद्धत्वरूप फळ मात्र शरीरवाळा छो अने हुं फळरूप आपना ध्यान रहित छु, तेथी मारे शंकर ? ए बाबतमा जड-मूढ थयेला मारा उपर मारे जे करवा लायक होय ते विधि देखाडवामा कृपा करो. ८.
इति त्रयोदश प्रकाशः १३.
Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106