Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 57
________________ (४८ ) गर्भित अने यथास्थित संसारनुं स्वरूप जोइने जे वैराग्य थाय ते ज्ञान गर्भित वैराग्य कहेवायछे.) ७.. औदासीन्येऽपि सततं, विश्वविश्वोपकारिणे । नमो वैराग्यनिनाय, तायिने परमात्मने ॥८॥ हे वीतराग ! उदासीनता ( मध्यस्थपणा ) ने विषे पण निरंतर सर्व विश्वने उपकार करनार, वैराग्यमां तत्पर, सर्वना रक्षक अने परब्रह्मस्वरूप एवा आपने अमारो नमस्कार हो. ८. इति द्वादश प्रकाशः १२. Jain Education Internationat Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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