Book Title: Vitrag Mahadev Stotra Author(s): Hemchandracharya, Publisher: Jain Atmanand SabhaPage 53
________________ (४४) हे प्रभु ! रागादिकने विषे दया रहित अने सर्व प्राणी उपर दयावाळा आपे प्रतापादिक भयंकर अने समतादिक मनोहर गुणे करीने मोटुं साम्राज्य साध्यु छे. ६. सर्वे सर्वात्मनाऽन्येषु, दोषास्त्वयि पुनर्गुणाः । स्तुतिस्तवेयं चेन्मिथ्या, तत्प्रमाणं सभासदः।। ७ ॥ हे नाथ ! हरिहरादिक अन्य देवोमां सर्व दोषो सर्व प्रकारे रहेला छे अने आपने विषे सर्वथा सर्व गुणो रहेला छे. आ आपनी स्तुति जो मिथ्या होय तो सभासदो प्रमाणभूत छे. तेओ जे कहे ते साचुं. ७. महीयसामपि महान, महनीयो महात्मनाम् । अहो ! मे स्तुवतः स्वामी, स्तुतेर्गोचरमागतः ॥८॥ मोटामां मोटा अने महात्माओना पण पूज्य एवा स्वामी आजे स्तुति करता एवा मारी स्तुतिना विषयने पाम्या छे. ९. इति एकादश प्रकाश. ११. - - Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106