Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 25
________________ ( १६ ) सुगन्ध्युदकवर्षेण, दिव्यपुष्पोत्करेण च । भावित्वत्पादसंस्पर्शा, पूजयन्ति भुवं सुराः ॥ १० ॥ जे भूमिने आपनो चरणस्पर्श थवानो छे ते भूमिने देवताओ सुगन्धी जळनी वृष्टिवडे अने दिव्य पंचवर्णवाळा पुष्पना पुंजवडे पूजे छे. १० जगत्प्रतीक्ष्य ! त्वां यान्ति, पक्षिणोऽपि प्रदक्षिणम् । का गतिर्महतां तेषां त्वयि ये वामवृत्तयः १ ॥ ११ ॥ हे त्रैलोक्यपूज्य ! ( अज्ञान ) पक्षीओ पण आ पने प्रदक्षिणा दे छे, तो पछी विवेकी अने बुद्धिशाली होवा छतां आपना प्रति प्रतिकूळ वर्त्ते छे एवा मानवीओनी शी गति थशे ? ११ पञ्चेन्द्रियाणां दौः शील्यं, क्व भवेद्भवदन्तिके ? | एकेन्द्रियोऽपि यन्मुञ्च - त्यनिलः प्रतिकूलताम् ॥ १२ ॥ संज्ञोपंचेन्द्रिय मनुष्यादिकनुं दुष्टपणं आपनी एवो पवन पण पासे क्यों रहे ? केमके एकेन्द्रिय प्रतिकूळताने तजी दे छे ( तो बीजानुं कहेवुं ज शुं ? ) मतलब ए के पवन पण सुखकारी ज वाय छे. १२ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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