Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 42
________________ ( ३३ ) चित्रमेकमनेकं च रूपं प्रामाणिकं वदन् । योगो वैशेषिको वापि, नाडनेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥ ९॥ एक ज रूप (घटादिक) अनेक रूप (आकार) वाळु छे, ते प्रमाणसिद्ध के. एम बोलतां नैयायिक अने वशेषिक | मतबाळा पण अनेकांतमतने उत्थापी शकता नथी. ९. इच्छन्प्रधानं सत्त्वाद्यै- विरुद्वैर्गुम्फितं गुणैः । साङ्ख्यः सङ्ख्यावतां मुख्यो, नाडनेकान्तं प्रतिक्षिपेत् १० विद्वानोमा मुख्य एवो सांख्य मत सत्त्वादिक विरुद्ध गुणे करीने सहित प्रधानने ( प्रकृतिने ) इच्छे छे, पटले के सत्त्वगुण, रजोगुण अने तमोगुण ए त्रिगुणात्मक प्रकृति छे एम इच्छे छे. ते त्रणे गुणो परस्पर विरुद्ध छे, तेने एक ज वस्तु (प्रकृति) मां माने छे; तेथी ते अनेकांत मतने उत्थापी शकतो नथी. १०. विमतिः सम्मतिर्वापि, चार्वाकस्य न मृग्यते । परलोकात्ममोक्षेषु, यस्य मुह्यति शेमुषी ॥ ११ ॥ हे प्रभु ! परलोक, जीव अने मोक्षमां पण जेनी Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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