Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

Previous | Next

Page 50
________________ बे बाबत आपने विषे प्रत्यक्ष देखाती होवाथो-घटमान छतां अन्यत्र अघटमान होवाथी शो रीते घटी शके ? ५. द्वयं विरुद्ध भगवंस्तव नान्यस्य कस्यचित् । निर्गन्थता परा या च, या चोचैश्चक्रवर्तिता ॥६॥ हे भगवन् ! जे उत्कृष्ट निग्रंथपणुं (निःस्पृहपणुं ) अने जे उत्कृष्ट चक्रवर्तीपणुं-आ बे विरुद्ध बाबतो के जे बीजा कोइ हरिहरादिकमां नथी, ते आपनामां स्वभाविक ज रहेली के, ६. नारका अपि मोदन्ते, यस्य कल्याणपर्वसु । पवित्रं तस्य चारित्रं, को वा वर्णयितुं क्षमः ? ॥७॥ जेमनी पांचे कल्याणक तिथिओमां नारकीओ पण एक मुहर्त मात्र आनंद पामे छे तेमनुं (आपर्नु) पवित्र चारित्र वर्णन करवा कोण समर्थ छे. ? ७. शमोऽद्भुतोद्भुतं रूपं, सर्वात्मसु कृपाद्भुता । सर्वाछुतनिधीशाय, तुभ्यं भगवते नमः ॥८॥ हे वीतराग ! आपने विषे अद्भुत समता, अदभुत रूप अने सर्व प्राणीओ उपर अद्भुत दया छे, तेथी सवं अद्भुतना महानिधानरूप आप भगवानने नमस्कार हो ! ८. प्रकाशः Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106