Book Title: Vitrag Mahadev Stotra Author(s): Hemchandracharya, Publisher: Jain Atmanand SabhaPage 44
________________ ( ३५ ) अथ नवम प्रकाश. ९. DO यत्राल्पेनापि कालेन, त्वद्भक्तैः फलमाप्यते । कलिकालः स एकोऽस्तु, कृतं कृतयुगादिभिः ॥१॥ आ प्रमाणे एकांत मतनो निराश करीने आ कलिकालनी उत्तमता देखाडवापूर्वक वीतराग प्रभुनु धर्मचक्रवर्तीपणुं बतावे छे जे कलिकालमां थोडाकाळवडे पण आपना भक्तो आपनी भक्तिना फळने पामे छे ते कलिकाल ज एक हो. कृतयुग वगेरे युगोथो सयु. तेनुं कांइ काम नथी. कहुं छे के "कृतयुगमा हजार वर्ष सुधी करेलो भक्तिनुं जे फळ प्राप्त थाय हे ते फळ त्रेतायुगमा एक वर्षवडे, द्वापरमां एक मासवडे अने कलियुगमा एक अहोरात्रवडे प्राप्त थाय छे." १. सुषमातो दुःषमायां, कृपा फलवती तव । मेरुतो मरुभूमौ हि, श्लाध्या कल्पतरोः स्थितिः॥२॥ हे प्रभु ! सुषमा काळ करतां दुःषमा (कलि) काळमां आपनी कृपा (होय तो ते) फळवाळी उत्तम Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106