Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 45
________________ फळने आपनारी छे, केमके मेरुपर्वत करतां मारवाडनो भूमिमां कल्पवृक्षनी स्थिति वखाणवा लायक छे. २. श्राद्धः श्रोता सुधीवक्ता, युज्येयातां यदीश ! तत् । त्वच्छासनस्य साम्राज्यमेकच्छत्रं कलावपि ॥३॥ हे प्रभु ! श्रद्धावान श्रोता अने सुधी (ओपना आगमना रहस्यने जाणनार) वक्ता ए बेनो जो समा गम थाय तो आवा कलियुगमां पण आपना शासननु एकछत्रवाळंज साम्राज्य छे. अहीं कुमारपाल राजा श्रोता अने पोते ( श्री हेमचन्द्राचार्य ) वक्ता ए बेनो योग थवाथी शासननु साम्राज्य थयुं तेथी आ अनुभवसिद्ध कवितुं वचन छे. ३. . युगान्तरेऽपि चेन्नाथ !, भवन्त्युच्छ्रङ्खलाः खलाः । वृथैव तर्हि कुप्यामः, कलये वामकेलये ॥४॥ हे नाथ ! जो कृतयुग विगेरे बीजा युगमां पण मंखलिपुत्र जेवा उद्धत खळपुरुषो होय छे, ता पछी अयोग्य चरित्रवाळा कलियुगनी उपर अमे फोगट ज कोप करीए छोए. ४. कल्याणसिद्धयै साधीयान्, कलिरेव कषोपलः । विनाग्निं गन्धमहिमा, काकतुण्डस्य नैधते ॥५॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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