Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 40
________________ ३१) एकांत नित्यपक्षमा पुण्य--पाप तथा बंध-मोक्ष संभवता नथी, तेम ज एकांत अनित्य पक्षमां पण पुण्य-पाप तथा बंध-मोक्ष संभवता नथी. ३. क्रमाक्रमाभ्यां नित्यानां, युज्यतेऽर्थक्रिया न हि । एकान्तक्षणिकत्वेऽपि, युज्यतेऽर्थक्रिया न हि ॥ ४ ॥ जीवाजीवादिक पदार्थोने एकांत नित्य मानीए तो क्रमे अथवा अक्रमे तेमनी अर्थ क्रिया घटी शकशे नहीं. ते ज रीते एकांत अनित्य मानवामां पण अर्थ क्रिया थइ शकशे नहों. ४. यदा तु नित्यानित्यत्व-रूपता वस्तुनो भवेत् ।। यथात्थ भगवन्नैव, तदा दोषोऽस्ति कश्चन ॥५॥ तेथो करीने हे भगवन् ! जेम आपे कर्तुं छे. तेम ज्यारे पदार्थनु नित्यानित्यपणुं मानीए, त्यारे कोइ पण जातनो दोष आवतो नथी. ५. गुडो हि कफहेतुः स्यानागरं पित्तकारणम् । द्वयात्मनि न दोषोऽस्ति, गुडनागरभेषजे ॥६॥ जेमके गोळ कफनो हेतु छे अने सुंठ पित्तनुं कारण छे. ते बन्ने गोळ अने सुंठ रुप औषधने विषे कफ के पित्त पत्र दोष नथी. परंतु उलटुं पुष्टिनुं कारण थाय छे. ६. Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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