Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 39
________________ ( ३० ) अथ अष्टम प्रकाश. हवे एकांतपक्षनिराश नामनो आठमोप्रकाश कहे छेसत्त्वस्यैकान्तनित्यत्वे, कृतनाशाकृतागमौ । स्यातामेकान्तनाशेऽपि, कृतनाशाकृतागमौ ॥१॥ हे प्रभु ! पदार्थ- एकांत नित्यपणुं मानवामां कृतनाश ( करेलानो नाश ) अने अकृतागम ( नहीं करेलानी प्राप्ति ) नामना बे दोष लागे छे, तेमज पदार्थनु एकांत अनित्यपणुं मानवामां पण कृतनाश . अने अकृतागम नामना बे दोष लागे छे. १. आत्मन्येकान्तनित्ये स्यान भोगः सुखदुःखयोः । एकान्तानित्यरूपेऽपि, न भोगः सुखदुःखयोः ॥२॥ आत्माने एकांत नित्य मानवाथी सुखदुःखनो भोग घटी शकतो नथी अने आत्माने एकांत अनित्य मा. नवाथी पण सुखदुःखनो भोग घटतो नथी. २. पुण्यपापे बन्धमोक्षौ, न नित्यकान्तदर्शने । पुण्यपापे बन्धमोक्षौ, नानित्यैकान्तदर्शने ॥३॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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