Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ ( २१ ) उपराउपरी रहेला त्रण छत्रो त्रण जगतना प्रभुपणानो मोटाईने कहेता होय तेम शोभे छे. ८. एतां चमत्कारकरी, प्रातिहार्यश्रियं तव । चित्रीयन्ते न के दृष्ट्वा, नाथ! मिथ्यादृशोऽपि हि १॥९॥ हे नाथ ! चमत्कारने. करनारी आपनी प्रातिहार्य लक्ष्मीने जोइने क्या मिथ्यादृष्टि जनो पण आश्चर्य नथी पामता ? सर्व जनो आश्चर्य पामे छे. ( जो के तीर्थकरोने अनंत अतिशया होय छे तो पण बाळजनोना बोधने माटे स्थूल दृष्टिथो चोत्रीश अतिशयो कहेवामां आवे छे. ) ९. इति पंचम प्रकाश. ५. Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106