Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 28
________________ ( १९ ) हे प्रभु ! वैराग्यने दीपन करनारा मालव, कैशिकी विगेरे ग्राम पर्यंत रागोवडे पवित्र थयेलो आपनो दिव्य ध्वनि हर्षथो उंची डोकवाळा मृगोए पण पीधो (सांभळ्यो ) छे. ३. तवेन्दुधामधवला, चकास्ति चमरावली । हंसालिरिव वक्त्राज-परिचर्यापरायणा ॥४॥ हे प्रभु ! चंद्रना किरणो जेवो उज्वल चमरावलो (चामरनी श्रेणी ) जाणे के आपना मुखकमळनी सेवामां तत्पर थयेलो हंसनी श्रेणी होय तेम शामे छे. ४. मृगेन्द्रासनमारूढे, त्वयि तन्वति देशनाम् । श्रोतुं मृगाः समायान्ति, मृगेन्द्रमिव सेवितुम् ॥५॥ हे प्रभु ! ज्यारे आप सिंहासन उपर आरूढ थइने देशना आपो छो त्यारे आपनी देशना सांभळवा माटे मृगलाओ पण आवे छे. ते जाणे के मृगेन्द्र ( पोताना स्वामी ) नी सेवा करवा आवता होय तेम लागे छे. ५. भासां चयैः परिवृतो, ज्योत्स्नाभिरिव चन्द्रमाः। चकोराणामिव दृशां, ददासि परमां मुदम् ॥६॥ Jain Education Internationat Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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