Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 33
________________ ( २४ ) करीए छोए, आपनाथी बीजो कोई ( देवादिक) रक्षण करनार नथी आथी बोजुं अमे शुं बोलीए ? अने शुं करोए ? ५. स्वयं मलीमसाचारैः, प्रतारणपरैः परैः । वंच्यते जगदप्येतत्, कस्य पूत्कुर्महे पुरः १ ॥ ६ ॥ पोते मलिन आचारवाळा अने बीजाने ठगवामां तत्पर एवा अन्य देवो आ आखा जगतने ठगे छे. तो हे नाथ! अमे कोनी पासे आ पोकार करीए ? ( आप सिवाय बीजा कोईनी पासे कहीए तेतुं नथी. ) ६. नित्यमुक्तान् जगज्जन्म - क्षेमक्षयकृतोद्यमान् । वन्ध्यास्तनन्धयप्रायान्, को देवांश्चेतनः श्रयेत् १ ॥७॥ निरंतर मुक्त तथा जगतनी उत्पत्ति, स्थिति अने प्रलय करवामां उद्यमवान एवा : वंध्या पुत्र समान देवोने कोण चेतनावाळो प्राणी आश्रय करे ? ( देव तरिके माने ? ) ७. कृतार्था जठरोपस्थ - दुःस्थितैरपि देवतैः । भवादृशानिह्नवते, हाहा ! देवास्तिकाः परे ॥ ८ ॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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