Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 36
________________ (२७ ) अथ सप्तमप्रकाश. हवे जगत्कर्तृनिरास नामनो सातमो प्रकाश कहे छे. धर्माधर्मी विना नाङ्गं, विनाङ्गेन मुखं कुतः । मुखाद्विना न वक्तृत्वं, तच्छास्तारः परे कथम् ? ॥१॥ धर्म अने अधर्म ( पाप-पुण्य ) विना शरीर होइ शकतुं नथी. शरीर विना मुख क्याथी होय ? अने मुख विना वक्तापणुं संभवतुं नथी; तेथी अन्य देवो (के जेओ नित्य मुक्त मानेला छे अने शरीरादिक रहित छ तेओ) उपदेशदाता शी रीते होइ शके ? १. अदेहस्य जगत्सर्गे, प्रवृत्तिरपि नोचिता । न च प्रयोजनं किंचित, स्वातन्त्र्यान पराज्ञया ?॥२॥ . वळी शरीर रहित देवनी जगतने उत्पन्न करवामां प्रवृत्ति पण उचित नथी. तेम ज स्वतंत्रपणु होवाथी तेवी प्रवृत्तिमां कांइ पण प्रयोजन नथी अने ते बीजानी आज्ञाथी प्रवर्तता पण नथी. २. क्रीडया चेत्प्रवर्तेत, रागवान् स्यात् कुमारवत् । कृपयाऽथ सृजेत्तर्हि, सुख्येव सकलं सृजेत् ॥३॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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