Book Title: Vitrag Mahadev Stotra Author(s): Hemchandracharya, Publisher: Jain Atmanand SabhaPage 27
________________ ( १८ ) अथ पंचम प्रकाश ५. शेष अतिशयानुं वर्णन. गायन्निवालिविरुत-नत्यन्निव चलैर्दलैः । त्वद्गुणैरिव रक्तोऽसौ, मोदते चैत्यपादपः ॥१॥ हे प्रभु ! आपना शरीरमानथी बारगुणा आ चैत्यवृक्ष भमराना शब्दवडे जाणे गायन करतो होय, वायुथी चलायमान थतां पांदडाओवडे जाणे नृत्य करतो होय अने आपना गुणोवडे जाणे रक्त (रातो) थयो होय तेम हर्ष पामे १. आयोजनं सुमनसो-ऽधस्तानिक्षिप्तबन्धनाः । जानुदन्नीः सुमनसो, देशनोा किरन्ति ते ॥२॥ हे प्रभु ! ओपनी देशना भूमि (समवसरण) मां देवताओ एक योजन सुधी नीचा डीटवाळा जानुप्रमाण पुष्पोने विखेरे छे-वरसे छे २. मालवकैशिकीमुख्य-ग्रामरागपवित्रितः । तव दिव्यो ध्वनिः पीतो, हर्षोद्ग्रीवैZगैरपि ॥३॥ Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106