Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya,
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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( १३ )
देवकृत अतिशय वर्णनरूप चोथो प्रकाश.
मिथ्यादृशां युगान्तार्कः, सुदृशाममृताञ्जनम् । तिलकं तीर्थकुलक्ष्म्याः, पुरश्चक्रं तवैधते ॥१॥
मिथ्यादृष्टिओने प्रलयकाळना सूर्यनी जेम संतापकारी अने सम्यग्दृष्टिओने अमृतना अंजननी जेम शान्तिकारी एवं तीर्थंकरलक्ष्मीना तिलक समान धर्मचक्र आपनी आगळ दीपी रह्युं छे. १
एकोऽयमेव जगति, स्वामीत्याख्यातुमुच्छ्रिता । उच्चैरिन्द्रध्वजव्याजा - तर्जनी जंभविद्विषा ॥२॥
जगतमां आ वीतराग ज एक स्वामी छे, एम जणाववा माटे इंद्रे उंचा इंद्रध्वजना मिषथी पोतानी तर्जनी अंगुली उंची करी छे, एम जणाय छे. २
यत्र पादौ पदं धत्त - स्तव तत्र सुरासुराः । किरन्ति पङ्कजव्याजा - च्छ्रियं पङ्कजवासिनीम् ||३||
ज्यां आपना चरण पडे छे त्यां देव अने दानवो नव सुवर्णकमळना व्याजथी कमळमां स्थिति करनारी लक्ष्मीने विस्तारे छे. ३
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