Book Title: Vitrag Mahadev Stotra
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 16
________________ पण दुर्गध रहित, (परम सुगंधिवाळू) दुर्गच्छा रहित अने (गायना दूध जेवू ) घोळु छे. ६ जलस्थलसमुद्भूताः, संत्यज्य सुमनःस्रजः । तव निःश्वाससौरभ्य-मनुयान्ति मधुव्रताः ॥७॥ हे वीतराग ! भ्रमराओ, जळनी अंदर उत्पन्न थएला अने स्थलमा उत्पन्न थएला पुष्पोनी माळाओ तजीने आपना नि:श्वासनी खुशबो लेवा (आपना वदन-कमळ पासे) आवे छे. ७ लोकोत्तरचमत्कार-करी तव भवस्थितिः । यतो नाहारनीहारौ, गोचरश्चर्मचक्षुषाम् ॥८॥ हे प्रभु ! आपनी संसारस्थिति लोकोत्तर (अपूर्व) चमत्कारने करवावाळी के, केमके आपना आहार अने नीहार चर्मचक्षुवाळा मनुष्यो जोइ शकता नथी. ८ ॥ इति द्वितीयप्रकाशः ।। - - Jain Education International Private & Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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