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श्री वेधवास्तु प्रभाकर
अनुक्रमणिका विषय श्लोक पत्र विषय श्लोक पत्र ग्रंथ संपादकको अभिनंदन-पत्रिका १ १ तारङ्गाका प्रासाद तल चित्र १४ स्तुति
पीठहीन, स्थापत्यहीन, जंधाहीन, टीकाकारका परिचय
शिखरहीन २६-२७ १५ भूमि परीक्षा
अतिदीर्घ, टुका, स्कंधहीन, विना त्याज्यभूमि
बंधका, सांधचाला न हो मस्तक ऋतु अनुसारभूमि ९ ६ स्थूल, कम नीमवाला ये पांच दिग्मुढका नेष्टफल और दिग्मुढका
प्रकारका दोष २८-२९ १५ दोष कहां न लगतो हे १०-१२ ७ दिग्मुर, नछंद. मस्तकभारी, आनहीन शिलारोपणके लिये नीम कहां तक ए चार प्रकारका दोष ३० १६
गाइना और शल्यशोधन १३-१४ महापीठ. कामदपीठ, कर्णपीठका गणितके तीन या चार अङ्ग मीलाना रेखाचित्र प्रतोल्या स्वरुपका रेखाचित्र १५ ९
मानहीन, अधिक यमचुलीवेध देवमंदिरसे कीस दिशामें
लक्षण
११-१२ १७ मकान बनाना
१६ १०
जगतीचोकी मंडप और गर्भ गृहका नाभिवेध और वो कहां दोष न
भूमितल केसे रखना १ . १७ वेध-वेध्यका अंतरसे दोष
शिखर रेखागका महामर्म ३४ १७
छंदभेद, जातीभेद, पदहोन, एकीन लगे २०-२१ १२
स्तंभ, मानसे दीर्घहस्व, वक्र, प्रासादमें सात दफा वास्तुपूजन
हीनमान ३५-३७ १८-१९ करना प्रासादवेध
प्रासाद या मंडपोंका सम विषमतल, विभक्ति अनुसार तल शिखर
स्तंभ, पट्टादि, सम विषमका बनाना
२. १३ दोष केसे न हो ? ३८ १९ हीनमान, द्वारहीन, कौलीहीन, अपवाद | खंड में एकस्तंभ न मुफनो मूलग स्तंभ-स्तंभन्यासहीन २४-२५ १३ । दबाना नहि
३९ २०
लगे