________________
( १३१) वास्तुपूजनके स्थापनमें स्थपति-शिल्पिका-चांदीका अष्टमूत्र रखके यजमान से पूजा करानी. विश्वकर्मा स्वरुप स्थपति-शिल्पिकी मंगोपचार पूजा करनी गजका पूजा करके वस्त्र और द्रव्य रु. ११ या ५ मुकाना. शिल्पि यजमानकी शुभाषिर्वाद देवे हस्त गजपूजन मंत्र
ईशो मारुत विश्ववद्धि विधयः सूर्यश्चरुद्रोयमः । वैरूपोवसवोष्टदंतिवरुणो षड्वक्र इच्छाक्रिया ॥ ज्ञान वित्तयति निशापति जयौ श्री वासुदेवोहली । कामोविष्णुरिति क्रमेण मरुतो हस्ते आयोविंशतिः ॥३२९।। राजवल्लभ
१ इश. २ वायु, ३ विश्वदेव, ४ अग्नि, ५ ब्रह्मा, ६ सूर्य, ७ रुद्र, ८ यम, ९ विश्वकर्मा, १० वसु, ११ गणेश, १२ वरुण, १३ कार्तिक, १४ इच्छा, १५ क्रिया, १६ ज्ञान, १७ कुबेर, १८ चंद्रमा, १९ जय, २० वायु. २१ बलभद्र, २२ कामदेव, २३ विष्णु एम २३ देवो स्थपति पूजन गज पूजन विधियो कर ।। तिनो स्थापनकी साथमें आरती करके अयं पुष्पांजली.
आवाहन न जानामि न जानामि तवार्चनम् । पूजांचैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥३३०।। मंत्र हीन क्रिया हीन भक्ति श्रद्धा विवर्जितम् ।
यत्पूजित मया देव परिपूर्ण तदस्तुमे ॥३३१॥ स्तुति बाद जो मुहूर्त करना हो वह करके आवाहन कीया देवोका और स्थापनका विसर्जन करना.
गच्छ गच्छ सुर श्रेष्ट स्वस्थाने परमेश्वर । यत्र ब्रह्मादयो देवा गच्छ व वास्तुदेवते ॥३३२।। यांतुदेव गणा सर्वे पूजामादाय माम । इष्ट काम समृद्धयर्थं पुनरागमनाय च ॥३३॥
॥ इति पूजाविधि समाप्त ॥