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। १३५ ) अब मैं श्रेष्ठ सूत्रधार स्थपतिकी पूजन विधि कहता हूं । यक्ष और मंडपके मध्यमें शुभसा मण्डल करें। वस से आच्छादित करके स्वस्तिक मंडल रचें। सूत्रधारको सूत्रासन पर बीठला कर आदरपूर्वक पाद प्रक्षालन करें । कुमकुमका लेपन करें और कीमती शालदुशाले और दीव्य बस्त्र पहनावे । मुकुट, कुन्डल, सूत्र कडा, उत्तम अंगूठो, हार, बाजुबंध, चरणके आभूषण आदि सर्व अलंकार स्त्री पुरुष ( मूत्रधार और सूत्रधार पनि ) को दानोंको उनके पुत्र परिवारादि सहित सबको दे । रहनेकेलिये घर, ग्रहसामग्री, गाय, भैंस, घोडा, आदि और काम करने वाले दासी और चाकर. वर्ग वाहन, सुखासन, पलंग, वगैरह दें। गांव या अच्छी भूमि-जमोन दें। सूत्रधारको पसन्न करें। उसकी प्रसन्नतासे ब्रह्मा विष्णु और महेशकी सतुष्टी और प्रसन्नता जाने । अन्य दुसरे काम करने वाले सबको योग्यता मुताबोक धन दें और वस्रो से आच्छादित करें । उन सबको उत्तम से वस्त्र उनकी योग्यताके क्रमसे दे कर संतुष्ट करें । ३३४ थी ३४०
योजनीया स्तथा सर्वे मिष्टान्नैः खंडपककैः । ताम्बुल विलेपन दद्या द्यावत् संतुष्ठ चेतसः ॥ ३४१ ।। तुप्टेव च जगतुष्ट' त्रैलोक्यौं सचराचरम् ।। सर्वतीर्थाद्भव' पुण्य सर्व देवानुषजकम् ।। ३४२ ॥
સર્વને મિષ્ટાન્ન ભજન પકવાનનું કરાવવું, પાનબીડું આપવું, ચંદન અર્ચવું. પ્રત્યેકના ચિત્ત પ્રસન્ન કશ્યા. એમના સંતુષ્ટ થવાથી સચરાચર ત્રિક સંતુષ્ટ થાય છે અને સર્વ તીર્થોથી મળનારૂં તથા સર્વ દેવેનું પૂજન ४२वाथी थना३ पुश्य प्राप्त थाय छे. ३४१-४२
सबको मिष्टान्न भोजन पका कर खिलावे । पानकी गिल्लोरी खिलावें । चंदनकी अर्चना करें सबके चित्तको प्रसन्न करें । उनके संतुष्ट होनेसे सचराचर त्रिलोक संतुष्ट होते हैं। और सब तिका और सर्व देवेकि पूजन से प्राप्त पुण्य मिलता है । ३४१-४४२