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भारद्वाज मुनिके गोत्र में शिल्पशास्त्रो : पंगलजी-नरभेराम-लाधाराम तत्पुत्र) रामजीभाइ वंशमे हुआ। रामजीभाई के सुपुत्र नेमनी, उनके भवानी शंकर, ऊनके भोघडभाइ हुए। ओघडभाइके कनिष्ठ पुत्र प्रभाशंकर नामके शिल्पशास्त्री है जिन्होंने श्री विश्वकर्माके प्रसादसे पूर्वाचान कहे हुए वेधवास्तुशास्त्रका निर्माण किया । २-३ भय भूपरीक्षा १-क्षेत्रमादौ परीक्षेय गन्धवर्ण रसप्लवैः ।।
मधुपुष्पाम्ल शीतानि गन्धानि विमानुपूर्णतः ॥ ४ ॥ शीता रक्ता च हरिता कृष्णा वर्णा तथा कृमात् ।
मधुरां फटुका तिक्तां कषायां च रस क्रमात् ।। ५ ।। વાસ્તુ ક્ષેત્રની પ્રસંદગીમાં પ્રથમ ભૂમિની પરીક્ષા તેનાં ગંધ. વર્ણ, સ્વાદ અને ઢાળ ઉપરથી કરવાની કહી છે. મીઠી સુગંધવાળી–બ્રાહ્મણને, પુષ્પ
की क्षत्रियन, भारी-वैश्यने, मने ताभी-शूद्र १५ श्रष्ट तरावी. स३, સતી, લીલી અને શ્યામ વર્ણની ભૂમિ બ્રાહ્નણાદિ વર્ણને અનુક્રમે શ્રેષ્ઠ જાણવી. સ્વાદિષ્ટ, કડવી, તીખી અને તુરી સ્વાદવાળી ભૂમિ અનુક્રમે બ્રાહ્મણદિ ચતુकरने योग्य वी. ४-५
बास्तु विद्यामें जमीनकी जांच:
भूमिकी जांचमें उसकी गन्ध, वर्ण, स्वाद और दाछ परसे करनेका कहा है । खुशघुदार ब्राह्मणों के लिये, पुष्प सुरभित क्षत्रियोंक लिये, खट्टी वैश्यों के लिये, और विक्ष भूमि शुद्रोंके लिये श्रेष्ठ है । रंग यानी कि वर्णकी दृष्टिसे सफेद, लाल, हरे और श्याम वर्णकी भूमि प्राह्मणादि चतुर्वर्णके अनुक्रममें योग्य है । स्वादिष्ट, कहुमा, तीखा और कषाय स्वादवाली जमीन अनुक्रममें ब्राह्मणादि चतुर्वर्णके लिये योग्य है । ४-५ १ भूपरीक्षा कई प्रकारसे होती है । जमीनके अन्दर गाड धनाके फिर उसी मिट्टी को इसी गाडमें भरना । जो मिट्टी भरनेसे वृद्धि हो तो उत्तम अगर घटे तो नेष्ट समझना । नाज बोयर भी परीक्षा होती है। जमीममें १ राज ४१ राज यज प्रमाणका गढे में पानी भरके सो कदम चलकर वापस आना । इस समय में जो पानी पूरा भरा हुआ हो तो भुत्तम भूमि, पानी में रहे तो नेष्ट जानना । भूमिके आकार परसे भी कसोटी हो सकती है। लेकिन यह सब को माम, शहर, नगर बसाने के समय हो सकता है।
शहरमें मिली हुई जमीन के गुण दोषकी जांच तो शुसके आकार परसे .. की जा सकती है।