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वेत
(९८) અને લોહ અષ્ટલેહના ભવનને ચંડ નામથી ઓળખાય છે. દેવ, દાનવ, ગંધર્વ, યક્ષ, રાક્ષસ અને પન્નગ (નાગ) એ પૂર્વોક્ત બાર પ્રકારના ગૃહો नियमयी ४ा- सायना धरने मनिस" हे छ. नहीन मने "प्रायुव"
छ. २४८-४८-५०
मुवर्ण, चांदी, तांबा और अष्टलोह-वे चारे के गृहोंके नाम कहते हैं । सुवर्णके भुवनको कर, चांदीके भवनको विभव, तांबेके भवनको सूर्य मंत्र और लोह अष्टके भवनको चंड नामसे जानते हैं। देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस और नाग सब लोगोंने पूर्वोक्त बार प्रकारके गृह नीयमीसे कहे । लाखसे बने घरको 'अनिल' कहते हैं और नदीके बांधको 'प्रायुव' कहते है । २४८-४९-५० पाषाणभवन पक्कीइंटकाभवन कच्चीईटका मीट्टी काष्ट मंदिर
भवन सुभन सुधार मानस
राजाकावस्रका तृणधास सुवर्ण चदन विजय
वादा
कालम्क र श्रीभव त्रविकाभवन सूर्य मंत्र
अथ शल्य विज्ञान जलान्त प्रस्तरां तं वा पुरुषान्तमथोपि वा । क्षेत्रस शोद्धये चोध्धृत्य शल्यं सदनमारभेत् ॥ २५१ ॥ केशाः कपालमत्यास्थि भस्मलोहे च मृत्यये । शल्यानेकविधाः प्रोक्ता धातुकाष्टास्थि संभवा ॥ २५२ ॥ तान्परिक्ष्य प्रकर्तव्यो गृहार भो द्विजोत्तम । नवकोष्टी कृते भूमि भागे पाच्यादितो लिखेद् ।
अक चट तप यशान्क्रमाद्वर्णा निमानि च ॥२५॥ विश्वकर्म प्रकाश मंत्रश्व
ॐ ह्रीं कूष्मांडि फौमारि ममहृदये कथय कथय ह्रीं स्वाहा । एक विंशति वारमनेन मंत्रेणाभि मात्र प्रश्ना मानयेत् ॥ २५४ ।।
__ अष्टलोह
जलबध
लाख Maa कहते हैं ।