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राहु सन्मुख होवे या पीछे होवे उस वक्त द्वार रखनेकी अगत्य होवे ती बुद्धिमान शिल्पो निम्न विधिसे स्थापन करना बताते हैं ।
बार अंगुल लंबी और एक अंगुल चौडी वैसी 'शुद्ध त्रांची दो सलाकाओ कराके द्वारके नीचेके दोनो कोनोंके नीचे रख उस पर द्वार स्थापन करें। वैसे द्वार स्थापन करनेसे अंतरिक्ष द्वार होता है और उससे राहुका दोष लगता नहीं । २७४ -२७५
पुनः शुद्धदिशाकाले तिर्यगुक्षे सुशोभने । द्वारचक्र शुभस्थाने बलिपूजाविधानकै || २७६॥
खातयेत् कुच्छ्रित द्वारभित्तिकायाञ्च बुद्धिमान | नीत्या तदा शलाकाञ्च द्वार वै स्थापयेतथा ॥ २७७||
ફરી જ્યારે રાહુ શુદ્ધ દિશામાં આવે ત્યારે તિયગૃતિના શુભ નક્ષત્રના દિવસે પેાતાના મૂળ સ્થાપનમાં દ્વાર ચક્રને દ્વાર પ્રતિષ્ઠાની અલિપૂજાના વિધાનપૂર્વક નીચે બતાવેલી વિધિ પ્રમાણે સ્થાપવું . બુદ્ધિમાન શિલ્પીએ દ્વારના નીચેના ખૂણાએ ( શલાકાની જગ્યાએ ભીંતમાં દિવાલ કાંચી માંકુ પાડવું શલાકા ખે’ચી કાઢવી અને પછી દ્વાર સ્થાપી દિવાલમાં પાડેલ मांडु यज़ी बेवु : ) आ अमले द्वार स्थापन विधि लावी. २७६-६७
फिर जब राहु शुद्ध दिशा में आवे तब तिर्यग्गतिके शुभ नक्षत्र के दिन अपने मूल स्थानमें द्वार चक्रको द्वारं प्रतिष्ठाकी बलिपूजा के विधानपूर्वक निम्न विधिसे स्थापित करें | बुद्धिमान शिल्पी द्वारके नोचेके कोने में ( सलाकाकी जगह पर भितिनें दिवाल कुरेदके बील बनाके शलाका खींच निकाले और फिर द्वारको स्थापना करके दिवालका वील पूरा भरले ) वैसे द्वारकी विधि जानें । २७६-२७७
॥ पुष्य नक्षत्रनी प्रशंसा ||
पापौर्विछेयुते हीने चन्दताराबलेऽपि च ।
पुष्पे सिद्धयन्ति सर्वाणि कार्याणि मंगलानि च || २७८ || ચક્રમા અને તારા મલહીન હાય, પાપગ્રહે થી વિંધાયલ હોય અથવા પાપગ્રહેાથી યુકત હોય તેપણુ પુષ્યનક્ષત્રમાં સમાંગલિક કાર્યો સિદ્ધ થાય છે. ૨૭૮
चंद्र और तारे बलहीन होवे, पाप ग्रहों से विद्यालय होवे और पाप ग्रहसि युक्त होवे फिर भी पुष्य नत्र में सर्व मांगलिक कार्य सिद्ध होते हैं । २७८