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विषय
भोक
गर्गतत्रे= मन और चक्षुसे संतुष्टी हो वहां दोष नहि लक्षणहीन वास्तु हो परंतु मनकी प्रसन्नता हो वहां दोष नहि २००-२०१
शुक्र
अथ भवने द्वार स्थापन -
निश्चित
८१ पदका वास्तु
द्वार स्थापन कग्ना
शहरमें चारो दिशाका गृह शुभ हे
पत्र
१९९ ८३
८५
२०२-२०८ ८६
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देवमंदिरकी प्रदक्षणा - २११ देवमंदिर में प्रनाताका नियम स्तंभवेध, वास्तुवेध, देववेध, २१३ गृह जीर्णोद्धार में द्वारप्रमाण कीनेसे वास्तुपूजन करना शिल्पि लक्षणा - वास्तुकार्य एक हाथसे
२१४
२०९-२१० ८७
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२१२ ८८
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कराना
२१५-२१७८९
जे वास्तु गुण अधिक हो ओर दोष अल्प हो वह वास्तु निर्दोष समजना २१८ वास्तु दोष अधिक हो ओर गुण अल्प हो वह वास्तुकला करना २/९-२२० ९० प्रासाद देवतान्यास थरमे देवोका वास होना है तो पूजन करना २२१-२४४ ९१-९६ वास्तु द्रव्यानुसार वास्तुनामाभिधान २४५-२५० ९७
अथ शल्यविज्ञान शल्यका प्रकार भूमि शुद्धि करना शल्यदर्शक कोष्टक शल्यशोधनका मंत्र २५१-२५९ ९८-१०१
ફર
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विषय
श्लोक पत्र
गृहप्रसाद प्रारंभसे शुभमुहूर्त देखना वृषचक्र - पृथ्वी सुति वेठी जागती देखना २६०-२६१ १०२-१०४
द्वार स्थापनचक्र वत्सचक्र
२६३-६६ १०५-१०७
४ धातु-वघा २८६-९३ ११८-२० वज्रलेपका दुसरा प्रकार - १ कराल २ मुद्गी ३ गुल्पास ४ कल्क ५ चिकम ब्रद्धोदक ए सर्वना मिश्रणने वज्रलेप २९४ ३१२ १२०-१२४ पूजा विधि-गणपति पूजन संकल्प पूजा आरती वास्तु पूजा वास्तुका सर्व देवका पूजन दिपाल जनकवान पूजन मंत्र पूजा पूर्णाहुती क्षमायाचन विसर्जन ३१३-३३३ १२५-१३१
पूजा द्रव्य सूत्रधार पूजनविधि वास्तुपीठ और अन्य प्रतिष्ठा सामग्रीका शोल्पीका अधिकार आचार्यका अधिकार यजमान सूत्रधार सूत्रधारना अष्टसूत्र काटगा सिद्धि प्रासादाङ्ग देव स्वरुप ३३४-३५५ १३२-१३९ || संपूर्ण ॥
स्तंभचक्र मोभ = पाटचक्र
२६७-२७० १०८-१०९ मंठा आलमसाराचक्र २७१-७३ ११० द्वारमें राहु देखना राहु वत्स छोडके मुहुर्त करना पुष्प नक्षत्रकी प्रशा
२७४-२८० १११-१३
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वास्तु पुरुषोत्पत्ति २८२-२८५ वास्तु पुरुषका अङ्ग पर देवोकी स्थान २१४ वज्रलेप ( हद हिना ) १ कल्प नामक वज्रलेप २ वज्रलेप ३ कल्क (वग्रसर )