________________
Vaishali institute Research Bulletin No. 3
काश्यः रसः स यस्य पानं स कश्यपः) कर दिया है। इससे पता लगता है कि किस प्रकार कालक्रम से प्राचीन परंपराएं विलुप्त होती गयीं और उनका स्थान नयी परंपराओं ने ग्रहण कर लिया। भगवान महावीर की जन्मभूमि वैशाली और उनके लिच्छवी कुल के विलुप्त हो जाने का यही रहस्य है।
कालक्रम से कितने ही जैन तीर्थ विछिन्न हो गये हैं। संभवतः इसका कारण है कि जैन लोग इन स्थानों को छोड़कर बनिज-व्यापार के लिए अन्यत्र चले गये। नये स्थानों में नये तीर्थों की स्थापना कर ली गयी । उदाहरण के लिए, जैन आचार्यों की मुख्य प्रवृत्तियों के केन्द्रस्थल विहार के कितने ही तीर्थ भुला दिये गये हैं और जैन यात्री आजकल इन तीर्थों की यात्रा नहीं करते । भद्रिलपूर मलय जनपद की राजधानी थी। पृष्पदंत नाम के दसवें तीर्थंकर की जन्मभूमि होने के कारण इसकी गणना अतिशय तीर्थों में की गयी है। इसकी पहचान हजारीबाग जिले के भदिया नामक गांव से की जा सकती है। लेकिन जैन लोग इस तीर्थ की यात्रा नहीं करते। आश्चर्य नहीं कि कालांतर में शनैःशनः जैन लोग वैशाली को भी भूल गये हों।
___ वस्तुतः भारत के इतिहास में वैशाली का नाम सुवर्णाक्षरों में अंकित रहेगा, जहाँ आज से अढ़ाई हजार वर्ष पहले गणतंत्र व्यवस्था वर्तमान थी, जिसकी तुलना प्राचीन यूनान के सुप्रसिद्ध नगर एथेंस की गणतंत्र प्रणाली से की जा सकती है। अन्तर इतना ही है कि यूनान की गणतंत्र प्रणाली योरपीय विद्वानों की कृपा से जग-प्रसिद्ध हो गयी और वैशाली की प्रणाली छिपी रह गयी । खेद है कि बिहार राज्य और भारत सरकार को इस दिशा में जो सक्रियता दिखानी चाहिए थी, उसका अभाव देखने में आता है। वैशाली की खोयी हुई गरिमा को फिर से उजागर करने की अधिकाधिक आवश्यकता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org