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Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 स्रोत के रूप में वर्णित है। यही सब कारण है कि ऋग्वेद में साथ-साथ चलने, साथ-साथ बोलने तथा साथ-साथ सोचने की अनुशंसा या कामना की गयी है ।१९
अपने हितों को साधने की दृष्टि से समाज में अनेकानेक समूह बने हुए थे। इसके पीछे पृष्ठभूमि के रूप में गुण-कर्म-विभागशः सामाजिक विभाजन का आदर्श सिद्धांत में स्वीकृत प्रतीत होता है, भले ही इसका पूरा परिपालन व्यवहार में नहीं हो रहा हो । समाज में ब्राह्मण तथा राजन्य की महत्ता थी। दोनों एक दूसरे के प्रति अलग-अलग हित रखते हुए भी पारस्परिक हित की डोर से बंधे थे। यह उल्लेखनीय है कि जहाँ एक ओर कुछ ब्राह्मणों ने अपनी सम्पत्ति एवं महिलाओं को लूट ले जानेवाले राजन्यों से अपनी रक्षा के लिए इन्द्र से प्रार्थना की है, वहीं दूसरी ओर पुरोहित और धनी राजन्यों के बीच प्रचुर दान पर आधारित आर्थिक सम्बन्ध की भी चर्चा है ।२० इसी लोभ से सम्पन्नों के लिए उच्च पुरोहित बड़ी-बड़ी स्तुतियाँ एवं कामनाएँ किया करते थे ।२१ मूर्ख ब्राह्मण के द्वारा पण्डित ब्राह्मण की नकल करने का कार्य निन्दनीय माना जाता था ।२२ इसका अर्थ है कि पण्डित ब्राह्मणों को अधिक लाभ था अर्थात् ब्राह्मणों में भी उच्च-निम्न का विचार गहराई पकड़ता जा रहा था और एक ही समूह में कई प्रकार के हित अलगाव के साथ पनपते जा रहे थे । ऋग्वेद में सौ-सौ गायों के दान में दिये जाने का उल्लेख है ।२३ यह दान दर किसके लिए थी, यह स्पष्ट नहीं है। इतना ही नहीं, दान के लिए पीछे पड़ जानेवाले ब्राह्मण भी थे, जिनकी तुलना ऋग्वेद में जोंक से की गयी है ।२४ जिनसे पुरोहितों को लाभ था, ऐसे राजन्यों के साथ उनका पारस्परिक हित का सम्बन्ध था। पुरोहित राजन्यों के लिए स्तुतियां करते थे तथा राजन्य पुरोहितों को दान देते थे। ऋग्वेद में अंकित स्तुतियों में पुरोहितों के द्वारा अपने लिए तथा राजन्यों के लिए देवताओं से धन-सम्पत्ति की माँग की गयी है ।२५ बार-बार निवेदन किया गया है कि उनके देवता इन दोनों में से किसी को कभी भी ध्यान से अलग नहीं रखें ।२६ जहाँ कहीं भी आवास की माँग की गयी है, वहाँ दोनों के लिए ।२७ पुरोहितों ने स्थायी दान देनेवाले राजन्यों के लिए यश एवं योग्य पुत्र हेतु देवताओं से स्तुति भी की है ।२८ पुनः सुपुत्रों के साथ अविनाशशील एवं दृढ़ शासन की
१९. X. 191.2 २०. V. 79.7, VIII. 82.21 २१. II. 24.9 पुरोहितों को देवताओं का स्तुतिगान करना था (III. 51.4) २२. X. 7.1.9 तुलनीय, VIII. 104.13--राजन्यों में भी। २३. V. 61.10 २४. IX. 112.1 २५. VI. 10.5, VIII. 97.2 २६. V. 64.6 २७. VI. 46.9 २६. V. 79.6
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