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Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 १, आमन्त्रणी ... "आप हमारे यहां पधारें", "आप हमारे विवाहोत्सव में सम्मलित हों।"-इस प्रकार आमंत्रण देनेवाले कथनों की भाषा आमन्त्रणी कही जाती है। ऐसे कथन सत्यपनीय नहीं होते । इसलिए ये सत्य या असत्य की कोटि से परे होते हैं। २. आज्ञापनीय
"दरवाजा बन्द कर दो", "बिजली जला दो", आदि आज्ञा-वाचक कथन भी सत्य या असत्य की कोटि में नहीं आते। ए० जे० एयर प्रभृत्ति आधुनिक तार्किकभाववादी विचारक भी आदेशात्मक भाषा को सत्यापनीय नहीं मानते हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने समग्र नैतिक कथनों के भाषायी विश्लेषण के आधार पर यह सिद्ध किया है कि वे विधि या निषेध रूप में आज्ञा सूचक या भावना सूचक ही हैं, इसलिए वे न तो सत्य हैं और न तो असत्य । ३. याचनीय
"यह दो" इस प्रकार की याचना करने वाली भाषा भी सत्य और असत्य को कोटि से परे होती है। ४. प्रच्छनीय
यह रास्ता कहाँ जाता है ? आप मुझे इस पद्य का अर्थ बतायें ? इस प्रकार के कथनों की भाषा प्रच्छनीय कही जाती है। चूंकि यह भाषा भी किसी तथ्य का विधि-निषेध नहीं करती है, इसलिए इसका सत्यापन सम्भव नहीं है । ५. प्रज्ञापनीय अर्थात् उपदेशात्मक भाषा
जैसे चोरी नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए, आदि । चूंकि इस प्रकार के कथन भी तथ्यात्मक विवरण न हो करके उपदेशात्मक होते हैं, इसलिए ये सत्य-असत्य की कोटि में नहीं आते। आधुनिक भाषा विश्लेषणवादी दार्शनिक नैतिक प्रकथनों का अन्तिम विश्लेषण प्रज्ञापनीय भाषा के रूप में ही करते हैं और इसलिए इसे सत्यापनीय नहीं मानते हैं, उनके अनुसार वे नैतिक प्रकथन जो बाह्य रूप से तो तथ्यात्मक प्रतीत होते हैं, लेकिन, वस्तुतः तथ्यात्मक नहीं होते; जैसे-चोरी करना बुरा है। उसके अनुसार इस प्रकार के कथनों का अर्थ केवल इतना ही है कि तुम्हें चोरी नहीं करना चाहिए या चोरी के कार्य को हम पसन्द नहीं करते हैं। यह कितना सुखद आश्चर्य है कि जो बोत आज के भाषा-विश्लेषक दार्शनिक प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे सहस्राधिक वर्ष पूर्व जैन विचारक सूत्र रूप में प्रस्तुत कर चुके हैं। ज्ञापनीय और प्रज्ञापनीय भाषा को असत्य-अमृषा कहकर उन्होंने आधुनिक भाषा-विश्लेषण का द्वार उद्घाटित् कर दिया था। ६. प्रत्याखनीय
- किसी प्रार्थी की मांग को अस्वीकार करना प्रत्याखनीय भाषा है। जैसे, तुम्हें यहाँ नौकरी नहीं मिलेगी अथवा तुम्हें भिक्षा नहीं दी जा सकती।
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