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बाहुबलि कथा का विकास एवं तद्विषयक साहित्य : एक सर्वेक्षण
कवि अमरचन्द का काल वि० सं० की १४ वीं सदी निश्चित है ।" वे गुर्जरेश्वर वीसलदेव की राजसभा में वि० सं० १३०० से १३२० के मध्य एक सम्मानित राजकवि के रूप में प्रतिष्ठित थे । २ बालभारत के मंगलाचरण में कवि ने व्यास की स्तुति की है । इससे प्रतीत होता है कि कवि पूर्व में ब्राह्मण था किन्तु बाद में जैनधर्मानुयायी हो गया । 3 जिस प्रकार कालिदास को "दीपशिखा " एवं माघ को "घंटामाघ" की उपाधियाँ मिली थीं, उसी प्रकार अमरचन्द्र को भी "वेणीकृपाण ४ की उपाधि से अलंकृत किया
गया था ।
कवि का उक्त पद्मानन्द महाकाव्य १७ सर्गों में विभक्त 1
शत्रुञ्जय माहात्म्य" में धनेश्वरसूरि ने भरत बाहुबली की चर्चा की है । उसके चतुर्थ सर्ग में बाहुबली एवं भरत के युद्ध संघर्ष तथा उसमें पराजित होकर भरत द्वारा बाहुबली पर चक्ररत्न छोड़े जाने तथा चत्ररत्न के विफल होकर वापिस लौट आने की चर्चा की गयी है | बाहुबली भरत के इस अनैतिक कृत्य पर संसार के प्रति उदासीन होकर दीक्षा ले लेते हैं ।
प्रस्तुत काव्य में कुल १५ सर्ग हैं तथा शत्रुञ्जय तीर्थ से सम्बन्ध रखनेवाले प्रायः सभी महापुरुषों की उसमें चर्चा की गयी है ।
एक प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि धनेश्वरसूरि ने वि० सं०४७७ में को वलभीनरेश शिलादित्य को सुनाया था । किन्तु अधिकांश विद्वानों ने सम्मत न मानकर उनका समय ई० सन् की १३ वीं शती माना है। वे चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य थे । ७
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३.
धणवालकृत बाहुबलिदेवचरिउ' का अपरनाम कामचरित भी है । इसकी १८ सन्धियों में महाकाव्य - शैली में बाहुबली के चरित का सुन्दर अंकन किया गया है । कवि सज्जन - दुर्जन का स्मरण करते हुए कहा है कि "यदि नीम को दूध से सींचा जाय, ईख को यदि शस्त्र से काटा जाय, तो भी जिस प्रकार वे अपना स्वभाव नहीं छोड़ते, उसी प्रकार सज्जन - दुर्जन भी अपने स्वभाव को नहीं बदल सकते ।" तत्पश्चात् कवि ने इन्द्रियजयी ऋषभ का वर्णन कर बाहुबली के जीवन का सुन्दर चित्रांकन किया है । इसका कथानक वही है, जो आदिपुराण का, किन्तु तुलना की दृष्टि से उक्त बाहुबली-चरित अपूर्व है ।
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प्रस्तुत काव्य उसे इतिहास चन्द्रगच्छ के
वही, पृ० सं० ३५१ ।
बाल भारत - आदिपर्व, ११।६.
वही, पृ० सं० ३५२ ।
वही, पृ० ३५२.
४.
श्री पोपटलाल प्रभुदास (अहमदाबाद, वि० सं० १९९५) द्वारा प्रकाशित
शत्रुञ्जय माहात्म्य - १५११८७.
० संस्कृत काव्य के विकास में जैनकवियों का योगदान, पृ० ४५१ ।
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