Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 4
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 220
________________ बाहुबली-कथा का विकास एवं तद्विषयक साहित्य : एक सर्वेक्षण 99 इसके सम्पादक मुनि नथमल जी हैं, जिन्होंने तेरापन्थी शासन संग्रहालय में सुरक्षित हस्तप्रति एवं आगरा के विजय-धर्मसूरि ज्ञानमन्दिर में सुरक्षित हस्तप्रति उपलब्ध करके उन दोनों के आधार पर इसका सम्पादन किया है। अनेक त्रुटित श्लोकों की पूत्ति मुनिराज नथमलजी ने को है। इसका सर्वप्रथम प्रकाशन सन् १९७४ में जैन विश्वभारती, लाडनूं से हुआ। इसका कथानक भरत चक्रवर्ती के छह खण्डों पर विजय प्राप्त करने के बाद उनके अयोध्या नगरी में प्रवेश के साथ होता है । उस समय बाहुबली बहली प्रदेश के शासक थे। बाहुबली के अपने अनुशासन में न आने से भरत चक्रवर्ती अपनी विजय को अपूर्ण मान रहे थे, अतः उन्होंने बाहुबली के पास सुवेग नामक दूत को भेजकर बाहुबली को संकेत किया कि वे भरत का अनुशासन स्वीकार कर लें। बाहुबली इसे अस्वीकार कर देते हैं और अन्त में दोनों में १२ वर्षो तक भयानक युद्ध होता है। युद्ध की समाप्ति पर बाहुबली भगवान ऋषभदेव के पास दीक्षा ले लेते हैं और भरतचक्रवर्ती शासन का काम करते हैं और अन्त में दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं।। काष्ठासंघ नन्दी तट गच्छ के भट्टारक सुरेन्द्रकीति के शिष्य पापी ने संवत् १०४९ में भरतभुजबली चरित्र की रचना की। इस रचना की पद्य संख्या १९ है । अन्तिम पद्य का एक अंश निम्न प्रकार है : कार जो जिनचन्द्र इन्द्रवंदित नमि रचार्थे । संधवी भोजनी प्रीत तेहना पठनार्थे । वलि सकल श्री संघ ने येथि सहू वांछित फले । चक्रिकामा नामे करी पामो कह सुरतरु फले ।। पद्य-२१९ __ वर्तमान में भी बाहुबली-चरित-सम्बन्धी साहित्य का प्रणयन हो रहा है। इन रचनाओं में मूल विषय के साथ-साथ आधुनिक शैलियों एवं नवीन वादों के प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। रचनाएं गद्य एवं पद्य दोनों में हैं। ऐसी रचनाओं में अन्तर्द्वन्द्वों के पार [श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन], जय गोम्मटेश्वर (श्री अक्षय कुमार जैन), भगवान आदिनाथ (श्री वसन्त कुमार शास्त्री) एवं बाहुबली-वैभव (श्री द्रोणाचार्य) प्रमुख हैं । उक्त ग्रन्थ तो प्रकाशित अथवा अप्रकाशित होने पर भी अध्ययनार्थ उपलब्ध हैं, अत उनकी विशेषताएं इस निबन्ध में प्रस्तुत की गयी हैं। किन्तु अभी अनेक ग्रन्थ-रत्न ऐसे भी हैं, जिनकी संक्षिप्त सूचनाएँ तो उपलब्ध हैं, किन्तु अध्ययनार्थ उन्हें उपलब्ध नहीं किया जा सकता । क्योंकि वे दूरदेशी विभिन्न शास्त्र-भण्डारों में बन्द हैं। इनके प्रकाश में आने से बाहुबलि-कथानक पर नया प्रकाश पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं। (ऐसे ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है :-) १. भारतीय ज्ञानपीठ (दिल्ली, १९७९) से प्रकाशित । २. स्टार पब्लिकेशंस (दिल्ली, १९७९) से प्रकाशित । ३. अनिल पाकेट बुक्स, मेरठ से प्रकाशित । ४. अनेकान्त प्रकाशन, फीरोजाबाद (आगरा) से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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