Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 4
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 196
________________ ऋग्वेद की कुछ सामाजिक-आर्थिक प्रवृत्तियाँ 75 रक्त-संबन्धी से रक्षा कराने, मित्र के हित के लिए इन्द्र से प्रार्थना करने, शत्रुओं के नष्ट किये जाने, अपने किसी भी सम्पन्न, उदार और प्रिय मित्र को अभाव में नहीं देखने, तथा अपने आदमियों से सहायता लेने १२ आदि से सम्बन्धित कई इच्छाएँ - आकांक्षाएँ ऋग्वेद में अभिव्यक्त हैं । भय और घृणा के संकेतक उपर्युक्त तथ्यों में बृहत् पैमाने पर व्याप्त भय-भावना तत्कालीन तनावपूर्ण मानसिक स्थिति का बोध कराती है । यह ध्यान देने लायक है कि ऋग्वेदकालीन समाज में न केवल शत्रुओं को सन्देह और शंका की दृष्टि से देखा जाता था, बल्कि अपने निकट के लोगों या रक्त-सम्बन्धियों के प्रति भी उसी तरह का अविश्वास व्याप्त था । १४ यह तथ्य कि अपने मित्र या रक्तसम्बन्धी भी कभी-कभी जीवन या अस्तित्व पर खतरा पैदा कर देते थे या सोद्देश्य धमकाते थे, तत्कालीन समाज के आन्तरिक कलह का संकेत देता है । इतना ही नहीं, दास, दस्यु, पणि तथा अन्य पाँच (अनु, ब्रह्म, यदु, तुर्वसु, आदि) मानव समूहों में पारस्परिक विरोध और घृणा के बहुत सारे चिह्न मिलते हैं । ऋग्वेद में दास और दस्युओं पर विजय पाने hit forएँ भी मिलती हैं । १५ कुछ लोगों ने अपने पड़ोसी पणियों के जला देने के लिए अश्विन से निवेदन भी किया है । १६ ऋग्वेद में पाँचों जातियों पर अपनी विजय पताका फहराने की इच्छाएँ भी वर्णित हैं । १७ यह कथन कि उषा का आगमन उसी तरह हो रहा है, जिस तरह युद्ध क्षेत्र में विभिन्न जनजातियाँ एकत्र होती हैं, " स्पष्ट करता है कि किस तरह वे आपस में कलहरत थे । इन सारे तथ्यों से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि तत्कालीन समाज में समूह-घृणा तथा पारस्परिक कलह का वातावरण विद्यमान था । ऋग्वेद में लूटपाट के बहुत सारे उल्लेख हैं । विजितों के धन को ले लेना आय के प्रधान ८. II. 28.10 ९. II. 11.14 १०. IV. 4.5 ११. II. 28.11; 29.7 १२. VIII. 64.15 १३. पाद टिप्पणी 1-7, 9-11-2 १४. वही, 8, 10 १५. II. 11.4; 12.4, 10; 13, 9 १६. VIII. 26.10 देखे II. 24.6; III. 58.2; IV. 25.7, 58.4; V. 34.7; VI. 13.3, 33.2, 44.22, 45.31, 51.54, 53.3, 5-6, 61.1; VIII. 9.2, 9.9, रामशरण शर्मा, "फॉर्म स ऑफ प्रोपर्टी...", ऊपर, पृ० 99-100. का कहना है कि पणि पण से जुड़ा है । पण का अर्थ है धन | ये अयज्ञवादी थे तथा धन छिपाकर रखते थे । II. 2.10 VIII. 79.2 १७. १८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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