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Vaishali Institute Research Bulletin No. 3 इन ग्यारह नियोगों का स्वरूप न्याय कुमुद चन्द्र प्रमाण वातिकालंकार में इसी प्रकार उपलब्ध है।
नियोगवाद की समीक्षा :-वेदवाक्य का अर्थ 'भावना' माननेवाले कुमारिल भट्ट ने नियोगवाद का खंडन किया है। विद्यानन्दाचार्य ने नियोगवाद की समीक्षा भावनावादी भट्ट के मतानुसार की है। उनका मत है कि हम नियोग पर जब विचार करते हैं, तब वह वाक्य का अर्थ सिद्ध नहीं होता है। भट्ट सम्प्रदाय नियोगवादियों से प्रश्न करते हैं कि नियोगवादी नियोग को प्रमाण मानते हैं या प्रमेय या दोनों मानते हैं। या दोनों नहीं मानते हैं ? शब्द का व्यापार मानते हैं अथवा पुरुष का व्यापार या दोनों के व्यापार रूप मानते हैं या दोनों व्यापार से रहित मानते हैं ? इन आठ विकल्पों पर क्रमशः विमर्श प्रस्तुत किया जाता है।
नियोग का प्रमाण नहीं है :--प्रथम पक्ष अर्थात्-नियोग प्रमाण नहीं है, यह स्वीकार करने पर यह दोष आता है कि नियोगवादी प्रभाकर को वेदान्तमत स्वीकार करना पड़ेगा। क्योंकि, वेदान्ती भी प्रमाण को चिदात्मक स्वीकार करते हैं और चिदात्मा को उन्होंने ब्रह्म-स्वरूप माना है । अतः नियोग प्रमाण नहीं है ।
नियोग प्रमेय नहीं है :-नियोग का प्रमेय मानना भी ठीक नहीं है, क्योंकि यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि यदि नियोग को प्रमेय कहते हैं तो फिर प्रमाण किसे मानेंगे ? क्योंकि बिना प्रमाण के प्रमेय की व्यवस्था नहीं होगी। यदि श्रुति-वाक्य को प्रमाण कहा जाय तो प्रश्न होता है कि श्रुतिवाक्य चिदात्मक है या अचिदात्मक ? यदि श्रुतिवाक्य चिदात्मक है तो प्रभाकर ने वेदान्तियों के ब्रह्म को ही श्रुतिवावय मान लिया है। इस दोष से बचने के लिए यदि श्रुतिवाक्य को अचिदात्मक कहा जाय तो उसे प्रमाण नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि, प्रमाण अचेतन नहीं हो सकता है, ज्ञान ही प्रमाण होने के योग्य है । अतः नियोग प्रमेय नहीं है।
१. द्वितीय भाग, पृ० ५८३-५८४ । २. पृ० २९-३० । ३. (क) अष्ट सहस्री, पृ० ७-१०। (ख) तत्वार्थ प्रलोकवार्तिक, पृ०-२६२ ।
तुलना के लिए द्रष्टव्य न्यायकुमुदचन्द्र, पृ० ५८५-५८८ । प्रमाणंकि नियोगः स्यात्प्रमेयमथवा पुनः । उभयेन विहीनो वा द्वयरूपोथवा पुनः ।। शब्द व्यापाररूपा वा व्यापार: पुरुषस्य वा । द्वयव्यापाररूपो वा द्वयाव्यापार एव वा ॥ तत्वार्थ श्लोकवार्तिक, पृ० २६२ । कारिका ११२-११३ । (क) अष्ट सहस्री, पृ० ७ । (ख) तत्वार्थ श्लोक वार्तिक, अध्याय १, सूत्र ३२, पृ० २६२ ।
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