Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 4
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 3
वह भावना उस व्यक्ति की एक मानसिक प्रवृत्ति है। वह उस श्रुति-वाक्य से उत्पन्न नहीं होती है। श्रुति-वाक्य तो मात्र सहकारी या निमित्त है । उसका उपादान तो आत्मा ही है । चाहे लौकिक वाक्य हो या श्रुतिवाक्य हों, सभी बायार्थ का प्रतिपादन करते हैं, जिन्हें भावना नहीं कहा जा सकता है ।
__ शब्द के व्यापार को भावना कहना बिल्कुल असंगत है । शब्द जड़ है, अतः शब्द का व्यापार भी जड़ ही होगा। उसे भावना नाम देना उसी प्रकार का है, जैसे कोई कुदाली को लाठी कहे। पुरुष के व्यापार को भावना कहा जा सकता है। किन्तु पुरुष का व्यापार श्रुतिवाक्य का अर्थ प्रमाण से प्रतीत नहीं होता है।
. इस प्रकार नियोग, विधि, और भावना को श्रुति-वाक्य का अर्थ मानना युक्तियुक्त नहीं है। जिस शब्द से जिस अर्थ की प्रतीति हो, जिसमें प्रवृत्ति हो और जिसकी प्राप्ति हो, वही उस शब्द का वाच्य या अभिधेय माने जाना योग्य है । जिस प्रकार घट शब्द से करबु, ग्रीगादिमान अर्थ की प्रतीति, प्राप्ति और उसी में प्रवृत्ति होने में वह घट शब्द का अर्थ माना जाता है। किन्तु श्रुतिवाक्य को सुनकर नियोग, भावना या विधि की न प्रतीति होती है, न प्राप्ति होती है और न प्रवृत्ति होती है। तब उन्हें शब्दार्थ वाक्यार्थ मानना युक्ति-संगत नहीं है।
१. विस्तृत विवेचन के लिए द्रष्टव्य, अष्टसहस्री, पृ० ३१-३५ ।
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