________________
29
ज्जिगणराज्य : पालि साहित्य के आलोक मैं मैं शादी कर देने एवं राजा से उनके लिए भूमि अजित कर राजा नियुक्त करने के सुझाव के साथ तपस्वी ने शिशुओं को उन्हें सौंप दिया। बच्चे जब कुछ बड़े हुए तो वे दूसरे बच्चों को सताने लगे। अतः उनकी झगड़ालू प्रकृति के कारण दूसरे बच्चे उन्हें वर्ष (वज्जेतवा) बताने लगे। इससे एक सौ योजन में विस्तृत यह भूभाग वज्जि कहा जाने लगा। बाद में गोपालकों ने राजा को खुश कर इस भूभाग को प्राप्त कर सोलह वर्ष की अवस्था में कुमार का राज्याभिषेक कर राजा बनाया। फिर दोनों की आपस में शादी कर दी। उन्हें सोलह जुड़वां बच्चे हुए । इस कारण नगर का विस्तार करना पड़ा। नगर को विशाल किये जाने से इसका नाम वैशाली पड़ा।।
बुद्ध के समय में वज्जि जनपद की राजधानी वैशाली धन-धान्य-सम्पन्न सघन आबादीवाला एक विशाल नगर था। यहाँ ७७०७ राजा थे, जिनके दरबारियों की संख्या बहुत बड़ी थी। उनके भोग-विलास एवं मनोरंजन के लिए ७७०७ प्रासाद तथा उतनी ही संख्या में आराम तथा पुष्करिणियाँ थीं। यहाँ की नगरवधू अम्बपालि सुन्दरता के लिए विख्यात थी। नगर को समृद्ध बनाने में उसका योगदान सराहनीय था। वैशाली में तीन दीवालें थीं, जो संभवतः तिब्बतन दुल्य में वर्णित तीन क्षेत्रों को अलग करती थीं ।२ ये तीन क्षेत्र वैशाली, कुण्डपुर और वाणिज्य ग्राम थे । वैशाली के प्रमुख चैत्यों में चापाल, सत्तम्बक, बहुपुत्तक, गोतमक सार दद तथा उदेन थे। ये मूल रूप से थक्ष चैत्य थे, जो बाद में बुद्ध एवं उनके संघ के चैत्य के रूप में परिणत हुए। इनके अतिरिक्त वैशाली के चैत्यों में कपिनह्य, मर्कट ह्रदतीर" एवं बालिकाछवि का भी उल्लेख है । चापाल चैत्य में ही बुद्ध ने तीन माह के अन्दर महानिर्वापित होने की घोषणा कर इसकी सूचना भार तथा आनन्द को दी थी।
लिच्छवि लोग प्रारम्भ में ही लड़ाकू प्रवृत्ति के थे। अतएव लिच्छवि कुमारों की तीरन्दाजी में विशेष अभिरुचि थी। वे प्रायः धनुष-वाण एवं शिकारी कुत्तों के साथ महावन में घूमा करते थे। लिच्छवियों की शक्ति एकता में निहित थी। ऐसा उल्लेख है १. महावग्ग, पृ० २८६ ।
रौकहिल, बुद्ध, पृ० ६२ । ३. देखें हानले, उवासगदसाओ का अनुवाद । ४. देखें, दी० नि०, भाग २, महापरिनिब्बाणसुत्त । ५. वैशाली में उपलब्ध अशोक-स्तम्भ के एक ओर एक छोटी-सी पुष्करिणी एवं
दूसरी ओर एक टीला था। टीले की खुदाई से एक स्तूप निकला है । संभवतः यही मर्कटहृदतीर चत्य था । सेनार्ट के अनुसार बालिकाछवि ही बालुकाराम था, जहां द्वितीय बौद्ध-संगीति
हुई थी। महावस्तु, पृ० २४९ । ७. दी० नि०, भाग-२, पृ० ८४ । ८. अं० नि०, भाग-३ पृ० ८६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org