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*aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaarti को दसवाँ पाराञ्चिक प्रायश्चित्त का विधान, तीन प्रकार के नपुंसकों को दीक्षा देने का निषेध, तीन अवगुण वाले (दुष्ट मूढ़ और कदाग्रही) की वाचना देने का निषेध, प्रथम प्रहर के आहार पानी को चतुर्थ प्रहर में ग्रहण नहीं करना, दो कोस से आगे आहार-पानी ले जाकर नहीं भोगना और औद्देशिक आधाकर्मी आहार पानी ग्रहण करना नहीं इत्यादि अनेक विषयों के कल्प्याकल्प्य का इसमें विधान है। ..
पाँचवां उद्देशक - इस उद्देशक में मैथुन भाव के प्रायश्चित्त का, क्लेश करके आये हुए भिक्षु के प्रति कर्त्तव्य का, संसक्त आहार के विवेक का, साध्वी को एकाकी विचरण का, उपाश्रय के बाहर आतापना लेने का, अनेक उपकरणों के कल्प्याकल्प्य का, परिवासित आहार
औषध के कल्प्याकल्प्य का, गोचरी करते समय सचित्त जल की बूंदे गिर जाने पर कल्प्याकल्प्य, पौष्टिक आहार आने पर उसके सेवन इत्यादि विषयों का कथन किया गया है।
छट्ठा उद्देशक - इस उद्देशक में साधु साध्वी को छह प्रकार के वचन बोलने का निषेध, साधु-साध्वी पर किसी प्रकार असत्य आरोप लगाने का निषेध, उत्सर्ग में साधु-साध्वी का
और साध्वी-साधु के पैर का कांटा, आँख की रज आदि नहीं निकाल सकते, किन्तु परिस्थिति वश निकालने का विधान, इसी प्रकार एक दूसरे को सहारा देने, परिचर्या आदि करने का विधान, साधु-साध्वी को संयम नाशक छह दोषों को जानकर उनके त्याग का विधान इत्यादि विषयों का कथन किया गया है।
व्यवहार सूत्र बृहत्कल्प की भांति व्यवहार सूत्र भी छेद सूत्र है। दोनों सूत्र एक दूसरे के पूरक हैं। इनमें साधु-साध्वी के आचार विषयक विधि-निषेध, उत्सर्ग, अपवाद तप प्रायश्चित्त आदि पर चिंतन किया गया है। इसके दस उद्देशक हैं।
प्रथम उद्देशक - इस उद्देशक में कपट रहित और कपट सहित आलोचना करने वाले तथा बार-बार दोषों का सेवन करने वाले साधु-साध्वी के प्रायश्चित्त का विधान, पारिहारिक एवं अपारिहारिक साधु-साध्वी के एक साथ बैठने, रहने आदि के कल्प्याकल्प्य, एकल विहारी साधु आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक आदि के पुनः गच्छ में आने की भावना पर
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