Book Title: Trini Ched Sutrani
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 13
________________ [12] aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaai १०. आयतिस्थान - इस दशा में विभिन्न प्रकार के निदानों का वर्णन है। मोह के उदय से भौतिक लालसाओं, कामादि की इच्छा की पूर्ति के संकल्प कर अपनी साधना दाव पर लगा डालने को आगमिक भाषा में निदान कहा गया है। निदान के परिणाम स्वरूप मोक्ष के अनन्त सुख देने वाली साधना को साधक कोडियों में - तुच्छ भौतिक सुखों में बेच डालता है और अपना संसार परिभ्रमण बढ़ा लेता है। इसी कारण इस दशा का नाम "आयति" रखा गया है। आयति से "ति" पृथक कर लेने पर "आय" अवशिष्ट रहता है। जिसका मतलब है लाभ यानी जिस निदान से जन्म मरण का लाभ होता है उसका नाम आयति है। बृहत्कल्प सूत्र __ वर्तमान के कल्प सूत्र (पर्युषणा कल्प) कि अपेक्षा इस सूत्र में साधु-साध्वी की समाचारी का विस्तृत वर्णन है। अतः इसे "बृहत्कल्प" कहते हैं। टीका भाष्य में इसे 'महाकल्प' भी कहा है, जैसे - 'खुड्डियायार कहा' बताया तो 'महल्लियायार कहा' भी बताया है। : - इस सूत्र की रचना १४ पूर्वी आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने की है। ऐसा दशाश्रुतस्कन्ध की नियुक्ति में बताया है। दुष्काल के समय में इस सूत्र की रचना हुई ऐसा इतिहासकारों का मानना है, उस समय लोगों के धान्य खाने में कमी होने से लोग जलीय कंदों एवं फलों आदि को खाते थे। उनकी आकृतियाँ भी तरह-तरह की होती थी वैसी वस्तुएं प्राप्त होने पर साधुसाध्वियों को आहारादि किस विधि से ग्रहण करना चाहिए उनका वर्णन प्रारंभ के पांच सूत्रों में बताया है। . वैसे कल्प शब्द अनेक अर्थों का बोधक है। किन्तु प्रस्तुत आगम में कल्प शब्द का आशय धर्म मर्यादा से है। इस आगम में श्रमण-श्रमणियों के आचार विषयक कल्पनीयअकल्पनीय, विधि-निषेध, उत्सर्ग, अपवाद, तप, प्रायश्चित्त आदि का विस्तृत चिन्तन किया गया है। इसके छह उद्देशक हैं - ___ प्रथम उद्देशक - इस उद्देशक में १. तालप्रलंब फल अखण्ड एवं अपक्व निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों ग्रहण न करने २. वर्षा ऋतु के अलावा हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में किसी नगर में निर्ग्रन्थ को एक माह और निर्ग्रन्थनियों दो माह अधिक ठहरना नहीं कल्पता ३. बाजार में जहाँ पुरुषों का आवागमन ज्यादा हो, ऐसे उपाश्रयों में साध्वियों को ठहरना नहीं कल्पता, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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