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२५. गुरुजन धर्मोपदेश देते हों तब सभा में ही कहे कि 'आप जो कहते हो वैसा उल्लेख कहाँ है?' २६. गुरुजन से व्याख्यान में कहे कि - 'आप तो भूलते हो, यह कहना सत्य नहीं है।' २७. गुरुजन के व्याख्यान को ध्यान से नहीं सुन कर उपेक्षा करे। २८. गुरुजन व्याख्यान देते हों, तब सभा में भेद डालने के लिए कहे - "महाराज! गोचरी का या अमुक काम का समय हो गया है।" २९. गुरुजन व्याख्यान देते हों, तब श्रोताजन के मन को व्याख्यान से हटाने की चेष्टा करे। ३०. गुरुजन का व्याख्यान पूरा नहीं हुआ हो, उसके पूर्व ही आप व्याख्यान शुरू कर दे। ३१. गुर्वादि की शय्या-आसन को पाँव से ठुकरावे। ३२. बड़ों की
शय्या पर आप खड़ा रहे, बैठे, सोए। ३३. गुरु के शयन आसन से अपना शयन आसन ऊँचा · करे या बराबर (समान) करे और उस पर सोए, बैठे तो आशातना लगे।
४. गणि. सम्पदा - संत समुदाय को गण कहा जाता है और जो गण का अधिपति होता है, वह गणी कहलाता है। इनकी आठ सम्पदाएं कही गई है। आचार सम्पदा, श्रुत सम्पदा, शरीर सम्पदा, वचन सम्पदा, वाचना सम्पदा, मति सम्पदा, प्रयोग मति सम्पदा और संग्रह परिज्ञा सम्पदा।
५. चित्त समाधि - इस दशा में चित्त समाधि के दस स्थानों का वर्णन है। संयमी साधक को धर्म का चिन्तन करते हुए ऐसी अपूर्व आत्म समाधि उत्पन्न होती है जो पहले कभी उत्पन्न नहीं हुई। धर्म-भावना, स्वप्नदर्शन, जातिस्मरणज्ञान, देवदर्शन, अवधिज्ञान, अवधिदर्शन, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, केवल दर्शन, केवल मरण (निर्वाण) इन दस स्थानों के वर्णन के साथ महामोहनीय के विषय पर भी प्रकाश डाला गया है। . ६. उपासक प्रतिमा - इसमें श्रावक की कठोरतम साधना के उच्च नियमों का परिज्ञान कराया गया है। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विस्तार से वर्णन कर यह बतलाया गया है जो श्रावक सर्व विरति साधना अंगीकार करने में अपने आप को असमर्थ मानता है। वह गृहस्थावस्था में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं स्वीकार कर श्रावक धर्म की उत्कृष्ट साधना कर सकता है।
७. भिक्षु प्रतिमा - इस दशा में साधु की कठिनतम साधना का वर्णन किया गया है भिक्षु की कुल बारह प्रतिमाएं हैं (कठिन साधना पद्धति) इन प्रतिमाओं को धारण करने वाले -- भिक्षु को सर्व प्रथम चौदह कठोर नियमों का पालन करना होता है। प्रथम सात प्रतिमा एक
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