Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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निरूपण है तथा षट् द्रव्य का भी वर्णन है। पदार्थों के विषय में जैनदर्शन और जैनेतर दर्शनों की मान्यता भिन्न स्वरूप वाली है। नैयायिक १६ पदार्थ मानते हैं, वैशेषिक ६-७ पदार्थ मानते हैं, बौद्ध चार पदार्थ मानते हैं, मीमांसक ५ पदार्थ मानते हैं तथा वेदान्ती एक अद्वैतवादी है। जैनदर्शन ने छह पदार्थ अर्थात् छह द्रव्य माने हैं । उनमें एक जीव द्रव्य है और शेष पाँच अजीव द्रव्य हैं। इन सभी का वर्णन इस पाँचवें अध्याय में है।
[६] छठे अध्याय में-२६ सूत्र हैं। इसमें प्रास्रव तत्त्व के कारणों का स्पष्टीकरण किया गया है। इसकी उत्पत्ति योगों की प्रवृत्ति से होती है। योग पुण्य और पाप के बन्धक होते हैं। इसलिये पुण्य और पाप को पृथक् न कहकर आस्रव में ही पुण्य-पाप का समावेश किया गया है ।
[७] सातवें अध्याय में-३४ सूत्र हैं। इसमें देशविरति और सर्वविरति के व्रतों का तथा उनमें लगने वाले अतिचारों का वर्णन किया गया है ।
[८] आठवें अध्याय में-२६ सूत्र हैं। इसमें मिथ्यात्वादि हेतु से होते हुए बन्ध तत्त्व का निरूपण है।
[6] नौवें अध्याय में-४६ सूत्र हैं। इसमें संवर तत्त्व तथा निर्जरा तत्त्व का निरूपण किया गया है।
[१०] दसवें अध्याय में-७ सूत्र हैं। इसमें मोक्षतत्त्व का वर्णन है ।
उपसंहार में ३२ श्लोक प्रमाण अन्तिम कारिका में सिद्ध भगवन्त के स्वरूप इत्यादि का सुन्दर वर्णन किया है। प्रान्ते ग्रन्थकार ने भाष्यगत प्रशस्ति ६ श्लोक में देकर ग्रन्थ की समाप्ति की है।
* श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर उपलब्ध अन्य ग्रन्थ * श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर वर्तमान काल में लभ्य-मुद्रित अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं ।
(१) श्रीतत्त्वार्थसूत्र पर स्वयं वाचक श्री उमास्वाति महाराज का 'श्रीतत्त्वार्थाधिगम भाष्य' स्वोपज्ञ रचना है, जो २२०० श्लोक प्रमाण है ।
(२) श्रीसिद्धसेन गणि महाराज कृत भाष्यानुसारिणी टीका १८२०२ श्लोक प्रमाण की है। यह सबसे बड़ी टीका कहलाती है ।